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________________ २३२ द्रव्यानुयोग-(१) ३. (उनसे) उत्तर दिशा में असंख्यातगुणे हैं, ४. (उनसे) दक्षिण दिशा में विशेषाधिक हैं। ५. दिशाओं की अपेक्षा १-२. सबसे अल्प देव ईशान कल्प में पूर्व एवं पश्चिम दिशा ३. (उनसे) उत्तर दिशा में असंख्यातगुणे हैं, ४. (उनसे) दक्षिण दिशा में विशेषाधिक हैं। ६. दिशाओं की अपेक्षा १-२. सबसे अल्प देव सनत्कुमारकल्प में पूर्व और पश्चिम दिशा में हैं, ३. (उनसे) उत्तर दिशा में असंख्यातगुणे हैं, ४. (उनसे) दक्षिण दिशा में विशेषाधिक हैं। ७. दिशाओं की अपेक्षा १-२. सबसे अल्प देव माहेन्द्रकल्प में पूर्व तथा पश्चिम दिशा में हैं, ३. उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, ४. दाहिणे णं विसेसाहिया। ५. दिसाणुवाए णं १-२. सव्वत्थोवा देवा ईसाणे कप्पे पुरथिम-पच्चत्थिमे णं, ३. उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, ४. दाहिणे णं विसेसाहिया। ६. दिसाणुवाएणं १-२. सव्वत्थोवा देवा सणंकुमारे कप्पे पुरस्थिम-पच्चत्थिमेणं, ३. उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, ४. दाहिणे णं विसेसाहिया। ७. दिसाणुवाएणं १-२. सव्वत्थोवा देवा माहिद कप्पे पुरथिमपच्चत्थिमेणं, ३. उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, ४. दाहिणे णं विसेसाहिया। ८. दिसाणुवाएणं १-२-३. सव्वत्थोवा देवा बंभलोए कप्पे पुरत्थिम-पच्चत्थिम उत्तरेणं, ४. दाहिणे णं असंखेज्जगुणा। ९. दिसाणुवाएणं १-२-३. सव्वत्थोवा देवा लंतए कप्पे पुरथिमपच्चस्थिम-उत्तरेणं, ४. दाहिणे णं असंखेज्जगुणा। १०. दिसाणुवाए णं १-२-३. सव्वत्थोवा देवा महासुक्के कप्पे पुरथिमपच्चत्थिम-उत्तरेणं, ४. दाहिणे णं असंखेज्जगुणा। ११. दिसाणुवाए णं १-२-३. सव्वत्थोवा देवा सहस्सारे कप्पे पुरथिमपच्चत्थिम-उत्तरेणं, ४. दाहिणे णं असंखेज्जगुणा। तेण पर बहुसमोववण्णगा समणाउसो! ३. (उनसे) उत्तर दिशा में असंख्यातगुणे हैं, ४. (उनसे) दक्षिण दिशा में विशेषाधिक हैं। ८. दिशाओं की अपेक्षा१-२-३. सबसे अल्प देव ब्रह्मलोककल्प में पूर्व, पश्चिम और उत्तर दिशा में हैं, ४. (उनसे) दक्षिण दिशा में असंख्यातगुणे हैं। ९. दिशाओं की अपेक्षा १-२-३. सबसे अल्प देव लान्तककल्प में पूर्व, पश्चिम और उत्तर दिशा में हैं, ४. (उनसे) दक्षिण दिशा में असंख्यातगुणे हैं। १०. दिशाओं की अपेक्षा १-२-३. सबसे अल्प देव महाशुक्रकल्प में पूर्व, पश्चिम और उत्तर दिशा में हैं, ४. (उनसे) दक्षिण दिशा में असंख्यातगुणे हैं। ११. दिशाओं की अपेक्षा १-२-३. सबसे अल्प देव सहनारकल्प में पूर्व, पश्चिम और उत्तर दिशा में हैं, ४. (उनसे) दक्षिण दिशा में असंख्यातगुणे हैं। हे आयुष्मन् श्रमणों ! इसके बाद के प्रत्येक कल्प ग्रैवेयक और अनुत्तर देवलोकों में चारों दिशाओं में (बहुत बिलकुल) सम उत्पन्न होने वाले हैं। १२. दिशाओं की अपेक्षा... १२. सबसे अल्प सिद्ध दक्षिण और उत्तर दिशा में हैं, ३. (उनसे) पूर्व में संख्यातगुणे हैं, ४. (उनसे) पश्चिम दिशा में विशेषाधिक हैं। १२. दिसाणुवाए णं १-२.सव्वत्थोवा सिद्धा दाहिणुत्तरेणं, ३. पुरथिमेणं संखेज्जगुणा, ४. पच्चत्थिमेणं विसेसाहिया। -पण्ण.प.३.स.२१३-२२४ १३८. ओहेण संसारी जीवाणं अप्पबहुत्तं अह भंते ! सव्वजीवप्पबहुं महादंडयंवत्तइस्सामि, १३८. ओघ से संसारी जीवों का अल्पबहुत्व भंते ! अब मैं समस्त जीवों के अल्पबहुत्व का निरूपण करने वाले महादण्डक का वर्णन करूँगा (करता हूँ)।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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