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________________ जरिया। १. अंबट्ठा य, २. कलिंदा, ३. विदेहा, ४. वेदगाइय। ५. हरिया, ६. चुंचुणा चेव, छ एया इब्भजाइओ। सेतंजाइआरिया। प. ३.से किं तं कुलारिया ? उ. कुलारिया छव्विहा पण्णत्ता,तं जहा १. उग्गा, २. भोगा, ३. राइण्णा , ४. इक्खागा, ५. णाया, ६. कोरव्वा'। सेतं कुलारिया। प. ४.से किंतं कम्मारिया ? उ. कम्मारिया अणेगविहा पण्णत्ता,तं जहा दोस्सिया, सोत्तिया, कपासिया, सुत्तवेयालिया, भंडवेयालिया, कोलालिया, णरवाहणिया, जे यावऽण्णे तहप्पगारा। सेतं कम्मारिया। प. ५.से किं तं सिप्पारिया ? उ. सिप्पारिया अणेगविहा पण्णत्ता,तं जहा तुण्णागा,तंतुवाया, पट्टगारा, देयडा, वरणा,छविहा, कठ्ठपाउयारा, मुंजपाउयारा, छत्तारा, वज्झारा, पोत्थारा, लेप्पारा, चित्तारा, संखारा, दंतारा, भंडारा, जिज्झगारा, सेल्लगारा कोडिगारा।जे यावऽण्णे तहप्पगारा। द्रव्यानुयोग-(१) १. अम्बष्ठ, २. कलिन्द, ३. वैदेह, ४. वेदग, ५. हरित, ६. चुंचुर्ण; ये छह इभ्य (अर्चनीय-माननीय) जातियां हैं। यह जात्यायों का निरूपण हुआ। प्र. ३. कुलार्य कितने प्रकार के हैं ? उ. कुलार्य छह प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. उग्र, २. भोग, ३. राजन्य, ४. इक्ष्वाकु, ५. ज्ञात, ६. कौरव्य। यह कुलायों का निरूपण हुआ। प्र. ४. कार्य कितने प्रकार के हैं ? उ. कार्य अनेक प्रकार के कहे गए हैं, यथा दोषिक, सौत्रिक, कासिक, सूत्रवैतालिक, भाण्डवैतालिक, कौलालिक और नरवाहिनिक-इसी प्रकार के अन्य जितने भी आर्यकर्म वाले हों, (उन्हें कार्य समझना चाहिए।) यह कार्यों की प्ररूपणा हुई। प्र. ५. शिल्पार्य कितने प्रकार के हैं ? उ. शिल्पार्य अनेक प्रकार के कहे गए हैं, यथा तुन्नाक (दर्जी), जुलाहा, पटवा, मशक बनाने वाला, झाडू पिंछि बनाने वाला, छाबड़ी बनाने वाला, काष्ठपादुकाकार, मुंजपादुकाकार, छत्रकार, वज्झार-बाह्यकार, पुच्छकार या पुस्तककार, लेप्यकार, चित्रकार, शंखकार, दन्तकार, भाण्डकार, सेल्लकार और कोडिकार। इसी प्रकार के अन्य जितने भी शिल्पकार हैं, (उन सबको) शिल्पार्य समझना चाहिए। यह शिल्पार्यों की प्ररूपणा हुई। प्र. ६. भाषार्य किन्हें कहते हैं ? उ. भाषार्य वे हैं, जो अर्धमागधी भाषा बोलते हैं और जहां भी ब्राह्मी लिपि प्रचलित है। (अर्थात्-जिनमें ब्राह्मी लिपि का प्रयोग किया जाता है।) ब्राह्मी लिपि में अठारह प्रकार का लेख विधान बताया गया है, यथा१. ब्राह्मी, '२. यवनानी, ३. दोषापुरिका, ४. खरोष्ट्री, ५. पुष्करशारिका, ६. भोगवतिका, ७ प्रहरादिका, ८. अन्ताक्षरिका, ९. अक्षरपुष्टिका, १०. वैनयिका, ११. निहविका, . १२. अंकलिपि, १३. गणितलिपि, १४. गन्धर्वलिपि, १५. आदर्शलिपि, १६. माहेश्वरी, १७. तामिली, १८. पौलिन्दी। यह भाषार्य का वर्णन हुआ। प्र. ७. ज्ञानार्य कितने प्रकार के हैं ? उ. ज्ञानार्य पांच प्रकार के कहे गए हैं, यथा सेतं सिप्पारिया। प. ६.से किं तं भासारिया ? उ. भासारिया जे णं अद्धमागहाए भासाए भासिंति जत्थ विय णं बंभी लिवी पवत्तइ। बंभीए णं लिवीए अट्ठारसविहे लेक्वविहाणे पण्णत्ते, तंजहा १. बंभी, २. जवणालिया, ३. दोसापुरिया, ४. खरोट्ठी, ५. पुक्खरसारिया, ६. भोगवईया, ७. पहराईयाओ य, ८. अंतक्खरिया, ९. अक्खरपुट्ठिया, १०. वेणइया, ११. णिण्हइया, १२. अंकलिवी, १३. गणितलिवी, १४. गंधव्वलिवी, १५. आयंसलिवी, १६. माहेसरी, १७. दामिली, १८. पोलिंदी - सेतंभासारिया। -पण्ण.प.१,सु.९९-१०७ प. ७.से किं तंणाणारिया ? उ. णाणारिया पंचविहा पण्णत्ता,तं जहा १. ठाणं. अ. ६, सु. ४९७ २. सम. १८, सु.७
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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