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________________ १६२ (१) अंतरदीवगप. से किं तं अंतरदीवया? उ. अंतरदीवया अट्ठावीसइविहा पण्णत्ता,तं जहा १.एगोरूया, २.आभासिया, ३. वेसाणिया, ४.णंगोली, ५.हयकण्णा, ६.गयकण्णा , ७. गोकण्णा, ८.सक्कुलिकण्णा, ९.आयंसमुहा, १०. मेंढमुहा, ११.अयोमुहा, १२. गोमुहा, १३.आसमुहा, १४.हत्थिमुहा, १५.सीहमुहा, १६.वग्घमुहा, १७.आसकण्णा, १८.सीहकण्णा, १९. अकण्णा, २०.कण्णपाउरणा,२१.उक्कामुहा, २२. मेहमुहा, २३. विज्जुमुहा, २४.विज्जुदंता, २५.घणदंता, २६.लट्ठदंता, २७. गूढदंता, २८. सुद्धदंता। सेतं अंतरदीवया। (२) अकम्मभूमगप. से किं तं अकम्मभूमया? उ. अकम्मभूमया तीसइविहा पण्णत्ता,तं जहा पंचहिं हेमवएहि,पंचहिं हिरण्णवएहिं, पंचहिं हरिवासेहि,पंचहिं रम्मगवासेहिं, पंचहिं देवकुरूहि,पंचहिं उत्तरकुरूहिं, सेतं अकम्मभूमया। (३) कम्मभूमगप. से किं तं कम्मभूमया? उ. कम्मभूमया पण्णरसविहा पण्णत्ता, तं जहा पंचहिं भरहेहि,पंचहिं एरवएहिं, पंचहि महाविदेहेहिं। ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा द्रव्यानुयोग-(१) (१) अंतरद्वीपकप्र. अन्तरद्वीपज कितने प्रकार के हैं ? उ. अन्तरद्वीपक अट्ठाईस प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. एकोरुक, २. आभासिक, ३. वैषाणिक, ४. नांगोलिक, ५. हयकर्ण, ६. गजकर्ण, ७. गोकर्ण, ८. शष्कुलिकर्ण, ९. आदर्शमुख, १०. मेण्ढमुख, ११. अयोमुख, १२. गोमुख, १३. अश्वमुख, १४. हस्तिमुख, १५. सिंहमुख, १६. व्याघ्रमुख, १७. अश्वकर्ण, १८. सिंहकर्ण, १९. अकर्ण, २०. कर्णप्रावरण, २१. उल्कामुख, २२. मेघमुख, २३. विद्युन्मुख, २४. विद्युदन्त, २५. घनदन्त, २६. लष्टदन्त, २७. गूढ़दन्त, २८. शुद्धदन्त। यह अन्तरद्वीपजों की प्ररूपणा हुई। (२) अकर्मभूमिजप्र. अकर्मभूमज मनुष्य कितने प्रकार के हैं ? उ. अकर्मभूमज मनुष्य तीस प्रकार के कहे गए हैं, यथा पांच हैमवत क्षेत्रों में, पांच हेरण्यवत क्षेत्रों में, पांच हरिवर्ष क्षेत्रों में, पांच रम्यक्वर्ष क्षेत्रों में, पांच देवकुरुक्षेत्रों में, पांच उत्तरकुरु क्षेत्रों में, इस प्रकार यह अकर्मभूमज मनुष्य की प्ररूपणा हुई। (३) कर्मभूमिजप्र. कर्मभूमज मनुष्य कितने प्रकार के हैं ? उ. कर्मभूमज मनुष्य पन्द्रह प्रकार के कहे गए हैं, यथा पांच भरत क्षेत्रों में, पांच ऐवत क्षेत्रों में, पांच महाविदेह क्षेत्रों में। वे (पन्द्रह प्रकार के कर्मभूमज मनुष्य) संक्षेप में दो प्रकार के हैं, यथा१. आर्य, २. म्लेच्छ। १.आरिया य, २.मिलक्खू यरे। -पण्ण.प.१,सु.९४-९७ (१) अणेगविहा मिलक्खूप. से किं तं मिलक्खू? उ. मिलक्खू अणेगविहा पण्णत्ता,तं जहा सग, जवण, चिलाय, सबर, बब्बर, काय, मुरुडोड्ढ, भडग, णिण्णग, पक्कणिय, कुलक्ख, गोंड, सिंहल, पारस, गांधोडंब, दमिल, चिल्लल, पुलिंद, हारोस, डोंब, वोक्काण, गंधाहारग्ग, बहलिय, अज्जल, रोम, पास, पउसा, मलया य, चुंचुया य, मूयलि, कोंकणग, मेय, पल्हव, मालव, गयग्गर, आभासिय, णक्क, चीणा, (१) अनेक प्रकार के म्लेच्छप्र. म्लेच्छ मनुष्य कितने प्रकार के हैं ? उ. म्लेच्छ मनुष्य अनेक प्रकार के कहे गए हैं, यथा शक, यवन, किरात, शबर, बर्बर, काय, मरुण्ड, उड्ड, भण्डक, निन्नक, पक्कणिक, कुलाक्ष, गोंड, सिंहल, पारस्य,आन्ध्र,उडम्ब, तमिल, चिल्लल, पुलिन्द, हारोस, डोंब, पोकाण, गन्धाहारक, बहलिक, अज्जल, रोम, पास, प्रदुष, मलय और चंचूक तथा मूयली, कोंकणक, मेद, पल्हव, मालव, गग्गर, आभाषिक, णक्क, चीना, ३. जीवा. पडि. ३, सु. ११३ १. जीवा. पडि.३, सु. १०८ २. जीवा. पडि. ३, सु. ११३
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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