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________________ ( १६० ।। मेसरा मसूरा मयूरा सयवच्छा गहरा पोंडरीया कागा कामंजुगा वंजुलगा तित्तिरा वट्टगा लावगा कवोया कविंजला पारेवया चिडगा चासा कुक्कुडा सुगा बरहिणा मयणसलागा कोइला सेहा वरेल्लगमाई। सेतं लोमपक्खी। । प. (३) से किं तं समुग्गपक्खी? उ. समुग्गपक्खी एगागारापण्णत्ता, तेणं णत्थि इह, बाहिरएसु दीव-समुद्दएसु भवंति। सेतं सम्मुग्गपक्खी। प. (४) से किं तं विततपक्खी ? उ. विततपक्खी एगागारापण्णत्ता, तेणं णत्थि इहं, बाहिरएसु दीवसमुद्दएसु भवंति। सेतं विततपक्खी। ते समासओ दुविहा पण्णत्ता,तंजहा द्रव्यानुयोग-(१) मेसर, मसूर, मयूर, शतवत्स, गहर, पोण्डरीक, काक, कामंजुक, वंजुलक, तित्तिर, वर्तक, लावक, कपोत, कपिंजल, पारावत, चिडी, चास, कुक्कुट, शुक, बी, मदनशलाका, (मैना) कोकिल, सेह और वरिल्लक आदि। यह रोमपक्षियों का वर्णन हुआ। प्र. (३) समुद्गपक्षी कितने प्रकार के हैं ? उ. समुद्गपक्षी एक ही आकार-प्रकार का कहा गया है। वे यहां (मनुष्यक्षेत्र में) नहीं होते। वे मनुष्यक्षेत्र से बाहर के द्वीप-समुद्रों में होते हैं। यह समुद्गपक्षियों की प्ररूपणा हुई। प्र. (४) विततपक्षी कितने प्रकार के हैं ? उ. विततपक्षी एक ही आकार-प्रकार के होते हैं। वे यहां (मनुष्यक्षेत्र में) नहीं होते। (मनुष्यक्षेत्र से) बाहर के द्वीप-समूहों में होते हैं। यह विततपक्षियों की प्ररूपणा हुई। ये खेचरपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च) संक्षेप में दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. सम्मूर्छिम, २. गर्भज। इनमें से जो सम्मूर्छिम हैं, वे सभी नपुंसक होते हैं। इनमें से जो गर्भज हैं, वे तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा-१. स्त्री, । २. पुरुष, ३. नपुंसक १. इस प्रकार चर्मपक्षी इत्यादि इन पर्याप्तक और अपर्याप्तक खेचर पंचेंद्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के बारह लाख कुलकोटि योनिप्रमुख होते हैं, ऐसा कहा है। २. सात लाख जाति कुलकोटि, ३. आठ लाख, ४. नौ लाख, ५. साढ़े बारह लाख, दस लाख, दस लाख तथा बारह लाख (तीन विकलेन्द्रिय और पांच तिर्यन्च पंचेन्द्रिय तक की क्रमशः) जाति कुलकोटि समझनी चाहिए। यह खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की प्ररूपणा हुई। यह पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीवों की प्ररूपणा हुई। यह तिर्यञ्चयोनिक जीवों की प्ररूपणा हुई। १. सम्मुच्छिमा य, २. गब्भवक्कंतिया य। तत्थ णं जे ते सम्मुच्छिमा ते सव्वे नपुंसगा। तत्थ णं जे ते गब्भवक्कंतिया तेणं तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-१. इत्थी, २.पुरिसा, ३. नपुंसगा। एएसि णं एवमाइयाणं खहयरपंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं बारस जाइकुलकोडि जोणिप्पमुहसयसहस्सा भवंतीतिमक्खाय। सत्तट्ठ जाइकुलकोडि,लक्ख नव अद्धतेरसाइंच। दस दस य होंति णवगा, तह बारसे चेव बोधव्वा। सेतं खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया। सेतं पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिया। सेतं तिरिक्खोजणिया। -पण्ण.प.१,सु.८६-९१ तिविहा पक्खी पण्णत्ता,तं जहा१.अंडया, २.पोयया, ३. समुच्छिमा। अंडया पक्खी तिविहा पण्णत्ता,तं जहा१. इत्थी, २.पुरिसा, ३.णपुंसगा। पोयया पक्खी तिविहा पण्णत्ता,तं जहा१.इत्थी, २.पुरिसा, ३.णपुंसगा। -ठाणं.अ.३, उ.१,सु.१३८/१-३ पक्षी तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. अंडज, २. पोतज, ३. संमूर्छिम। अंडज पक्षी तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. स्त्री, २. पुरुष, ३. नपुंसक। पोतज पक्षी तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. स्त्री, २. पुरुष ३. नपुंसक। ३. जीवा. पडि. ३, सु. ९६ (२) १. जीवा. पडि. १, सु. ३६ २. (क) जीवा. पडि.१, सु.३६ (ख) जीवा. पडि. १, सु. ४०
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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