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________________ जीव अध्ययन ३. तत्थ णं जे ते सम्मुच्छिमा ते सव्वेणपुंसगा। ४. तत्थ णं जे ते गब्भवक्कंतिया ते णं तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-१. इत्थी, २.पुरिसा, ३.णपुंसगा। एएसि णं एवमाइयाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं भुयपरिसप्पाणं णवजाइकुलकोडिजोणिपमुहसयसहस्सं हवंतीति मक्खायं। सेतं भुयपरिसप्प-थलयर-पंचेन्दिय-तिरिक्खजोणिया। से तं परिसप्प-थलयर-पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिया। -पण्ण. प.१,सु.८५ तिविहा उरपरिसप्पा पण्णत्ता,तं जहा१. अंडया, २. पोयया, ३. संमुच्छिमा। अंडया उरपरिसप्पा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा१. इत्थी, २. पुरिसा, ३ णपुंसगा। पोयया उरपरिसप्पा तिविहा पण्णत्ता,तं जहा१. इत्थी, २. पुरिसा, ३. णपुंसगा। तिविहा भुजपरिसप्पा पण्णत्ता,तं जहा१. अंडया, २. पोयया, ३. संमुच्छिमा। अंडया भुजपरिसप्पा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा१. इत्थी, २. पुरिसा, ३. णपुंसगा। पोयया भुजपरिसप्पा तिविहा पण्णत्ता,तं जहा१. इत्थी, २. पुरिसा, ३. णपुंसगा। -ठाणं.अ.३, उ.१.सु.१३८ ३. खहयराणं पण्णवणाप. से किं तं खहयर-पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिया? उ. खहयर-पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिया चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-१.चम्मपक्खी, २.लोमपक्खी, ३.समुग्गपक्खी, ४.वियतपक्खी। प. (१)से किंतं चम्मपक्खी? उ. चम्मपक्वी अणेगविहा पण्णत्ता,तं जहा वग्गुली, जलोया, अडिया, भारंडपक्खी, जीवंजीवा, समुद्दवायसा, कण्णत्तिया, पक्खिबिराली, जे यावऽण्णे तहप्पगारा। सेतंचम्मपक्खी। प. (२) से किं तं लोमपक्खी ? उ. लोमपक्वी अणेगविहा पण्णत्ता,तं जहा ढंका कंका कुरला वायसा चक्कागा हंसा कलहंसा पायहंसा रायहंसा अडा सेडी बगा बलागा पारिपवा कोंचा सारसा - १५९ ) ३. इनमें से जो सम्मूर्छिम हैं वे सभी नपुंसक होते हैं। ४. इनमें से जो गर्भज हैं, वे तीन प्रकार के कहे गए हैं। यथा-१. स्त्री, २. पुरुष, ३. नपुंसक। इस प्रकार (नकुल) इत्यादि इन पर्याप्तक और अपर्याप्तक भुजपरिसरों के नौ लाख जाति कुलकोटि योनिप्रमुख होते हैं, ऐसा कहा है। यह भुजपरिसर्प-स्थलचर पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों का प्ररूपण हुआ। परिसर्प-स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों का प्ररूपण हुआ। उरपरिसर्प तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. अंडज, २. पोतज, ३. संमूर्छिम। अंडज उरपरिसर्प तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. स्त्री, २. पुरुष, ३. नपुंसक। पोतज उरपरिसर्प तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. स्त्री, २. पुरुष, ३. नपुंसक। भुजपरिसर्प तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. अंडज, २. पोतज, ३. संमूर्छिम। अंडज भुजपरिसर्प तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. स्त्री, २. पुरुष, ३. नपुंसक। पोतज भुजपरिसर्प तीन प्रकार के कहे मए हैं, यथा१. स्त्री, २. पुरुष, ३. नपुंसक। ३. खेचर जीवों की प्रज्ञापनाप्र. खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक कितने प्रकार के हैं ? उ. खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा-१. चर्मपक्षी, २. रोमपक्षी, ३. समुद्गकपक्षी, ४. विततपक्षी। प्र. (१) चर्मपक्षी खेचर कितने प्रकार के हैं ? उ. चर्मपक्षी अनेक प्रकार के कहे गए हैं, यथा वल्गुली, जलोका, अडिल्ल, भारण्डपक्षी, जीवंजीव, समुद्रवायस, कर्णत्रिक, और पक्षिविडाली। अन्य जो भी इस प्रकार के पक्षी हों उन्हें चर्मपक्षी समझना चाहिए। यह चर्मपक्षियों की प्ररूपणा हुई। प्र. (२) रोमपक्षी कितने प्रकार के हैं ? उ. रोमपक्षी अनेक प्रकार के कहे गए हैं, यथाढंक, कंक, कुरल, वायस, चक्रवाक, हंस, कलहंस, पादहंस, राजहंस, आड, सेडी, बक, बलाका, पारिप्लव, क्रौंच, सारस, १. जीवा. पडि. १, सु. ३९ जीवा. पडि. ३, सु. ९६ (२) २. (क) जीवा. पडि. १, सु. ३६ (ख) उत्त. अ.३६,गा. १८८ (ग) ठाणं. अ. ४, सु. ३५१/२ ३. जीवा. पडि.१, सु. ३६ .
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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