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________________ १५२ १. पज्जत्तया य २. अपज्जत्तया य। एएसि णं एवमाइंयाणं चउरिंदियाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं णव जाइकुलकोडिजोणिप्पमुहसयसहस्सा भवंतीति मक्खायं। सेतंचउरिदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवण्णा।' -पण्ण. प.१ सु.५८ ६५. पंचेदियजीवपण्णवणा भेया प. से किं तं पंचेंदिय संसारसमावण्णजीवपण्णवणा? द्रव्यानुयोग-(१) १.पर्याप्तक २. अपर्याप्तक। इस प्रकार चतुरिन्द्रिय पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों के नौ लाख जाति-कुलकोटि-योनि प्रमुख होते हैं, ऐसा (तीर्थकरों ने) कहा है। यह चतुरिन्द्रिय संसारसमापनक जीवों की प्रज्ञापना हुई। ६५. पंचेन्द्रियजीवों की प्रज्ञापना के भेदप. पंचेन्द्रिय-संसार समापन्नक जीवों की प्रज्ञापना कितने प्रकार की हैं? उ. पंचेन्द्रिय-संसार समापन्नक जीवों की प्रज्ञापना चार प्रकार की कही गई है, यथा१. नैरयिक-पंचेन्द्रिय-संसार समापन्नक-जीव प्रज्ञापना, २. तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-संसार समापन्नक-जीव प्रज्ञापना, ३. मनुष्य-पंचेन्द्रिय-संसार समापन्नक-जीव प्रज्ञापना, ४. देव-पंचेन्द्रिय-संसार समापन्नक-जीव प्रज्ञापना। उ. पंचेंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा चउब्विहा पण्णत्ता, तंजहा१.नेरइय पंचेंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा। २.तिरिक्खजोणियपंचेंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा। ३.मणुस्सपंचेंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा। ४.देवपंचेंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणार -पण्ण.प.१,सु.५९ ६६. नेरइयजीवपण्णवणा प. से किं तं नेरइया ? उ. नेरइया सत्तविहा पण्णत्ता,तं जहा १. रयणप्पभापुढविनेरइया, २. सक्करप्पभापुढविनेरइया, ३. वालुयप्पभापुढविनेरइया, ४. पंकप्पभापुढविनेरइया, ५. धूमप्पभापुढविनेरइया, ६. तमप्पभापुढविनेरइया, ७. तमतमप्पभापुढविनेरइया। ते समासओ दुविहा पण्णत्ता,तं जहा ६६. नैरयिक जीवों की प्रज्ञापना प्र. नैरयिक कितने प्रकार के हैं ? उ. नैरयिक सात प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. रत्नप्रभापृथ्वी-नैरयिक, २. शर्कराप्रभापृथ्वी-नैरयिक, ३. वालुकाप्रभापृथ्वी नैरयिक, ४. पंकप्रभापृथ्वी-नैरयिक, ५. धूमप्रभापृथ्वी-नैरयिक, ६. तम:प्रभापृथ्वी-नैरयिक, ७. तमस्तमःप्रभापृथ्वी-नैरयिक। वे (सातों प्रकार के नैरयिक) संक्षेप में दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१.पर्याप्तक, २. अपर्याप्तक। यह नैरयिकों की प्ररूपणा हुई। ६७. तिर्यञ्चयोनिकों के भेद तिर्यञ्चयोनिक तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. स्त्री, २. पुरुष, ३. नपुंसक। प्र. तिर्यञ्चयोनिक कितने प्रकार के हैं ? उ. तिर्यञ्चयोनिक पांच प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक, २. द्वीन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक, १. पज्जत्तया य, २.अपज्जत्तया य। सेत नेरइया। -पण्ण.प.१,सु.६० ६७. तिरिक्खजोणियभेया तिविहा तिरिक्खजोणिया पण्णत्ता,तं जहा१.इत्थी २. पुरिसा, ३. णपुंसगा -ठाणं अ.३, उ.१ सु.१४० प. से किंतं तिरिक्खजोणिया ? उ. तिरिक्खजोणिया पंचविहा पण्णत्ता,तं जहा १. एगिंदियतिरिक्खजोणिया, २. बेइंदियतिरिक्खजोणिया, १. (क) उत्त. अ.३६,गा. १४५-१४९ (ख) जीवा पडि. १.स.३० (ग) ठाणं अ. ९,सु.७०१ (क) उत्त. अ. ३६, गा. १५५ (ख) जीवा. पडि.१,सु.३१ ३. जीवा. पडि. ३, सु. ६६ ४. (क) उत्त. अ.३६, गा. १५६-१५७ (ख) जीवा. पडि. १, सु. ३२
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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