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________________ जीव अध्ययन १.सुहमणिगोदा य, २. बादरणिगोदाय। प. सुहुमणिगोदा णं भंते! कइविहा पण्णत्ता? उ. गोयमा! दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १.पज्जत्तगाय, २. अपज्जत्तगाय। बायरणिगोदा वि दुविहा पण्णत्ता, तं जहा १.पज्जत्तगा य, २. अपज्जत्तगा य। प. निगोदजीवाणं भंते ! कइविहा पण्णत्ता? उ. गोयमा !दुविहा पण्णत्ता, तं जहा १.सुहुमणिगोदजीवा य, २. बादरणिगोदजीवा य। सुहमणिगोदजीवा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा१.पज्जत्तगाय, २. अपज्जत्तगा य बायरणिगोदजीवा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा१.पज्जत्तगाय, २. अपज्जत्तगाय।' -जीवा. पडि.३, सु. २२४ ६०. निगोयाणं दव्वट्ठपएसठ्ठयाए संखा परूवणं प. णिगोदा णं भंते ! दव्वट्ठयाए किं संखेज्जा, ' असंखेज्जा, अणंता? उ. गोयमा ! णो संखेज्जा, असंखेज्जा, णो अणंता। एवं पज्जत्तगा वि अपज्जत्तगा वि। - १४९ ) १. सूक्ष्मनिगोद, २. बादरनिगोद। प्र. भंते ! सूक्ष्मनिगोद कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उ. गौतम ! दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. पर्याप्तक, २. अपर्याप्तक। बादरनिगोद भी दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. पर्याप्तक, २. अपर्याप्तक। प्र. भंते ! निगोदजीव कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उ. गौतम ! दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा १. सूक्ष्मनिगोदजीव, २. बादरनिगोदजीव। सूक्ष्मनिगोदजीव दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा१.पर्याप्तक, २. अपर्याप्तक। बादरनिगोदजीव भी दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. पर्याप्तक, २. अपर्याप्तक। प. सुहमणिगोदा णं भंते ! दव्वट्ठयाए किं संखेज्जा, असंखेज्जा अणंता? उ. गोयमा !णो संखेज्जा,असंखेज्जा,णो अणंता। एवं पज्जत्तगा वि अपज्जत्तगा वि। एवं बायरा वि पज्जत्तगावि अपज्जत्तगा विणो संखेज्जा, असंखेज्जा,णो अणंता। ६०. निगोदों की द्रव्यप्रदेश की अपेक्षा संख्या का प्ररूपणप्र. भंते ! निगोद द्रव्य की अपेक्षा क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? उ. गौतम ! संख्यात नहीं हैं, असंख्यात हैं, अनन्त नहीं हैं। इसी प्रकार इनके पर्याप्त और अपर्याप्त भेद भी कहने चाहिए। प्र. भंते ! सूक्ष्मनिगोद क्या द्रव्य की अपेक्षा संख्यात है, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? उ. गौतम ! संख्यात नहीं, असंख्यात हैं, अनन्त नहीं हैं। इसी प्रकार इनके पर्याप्त तथा अपर्याप्त भेद भी कहने चाहिए। इसी प्रकार बादरनिगोदों और उनके पर्याप्त तथा अपर्याप्त भेद भी कहने चाहिये कि वे संख्यात नहीं, असंख्यात हैं और अनंत नहीं हैं। प्र. भंते ! निगोदजीव क्या द्रव्य की अपेक्षा संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनंत हैं? उ. गौतम ! संख्यात नहीं हैं, असंख्यात नहीं हैं, किन्तु अनंत हैं। इसी प्रकार इनके पर्याप्त और अपर्याप्त भेद भी जानने चाहिए। इसी प्रकार सूक्ष्मनिगोद जीवों और इनके पर्याप्त और अपर्याप्त तथा बादरनिगोद जीवों और उनके पर्याप्त और अपर्याप्त भेद भी कहने चाहिए। (ये द्रव्य की अपेक्षा से निगोद के तथा निगोदजीव के कुल अठारह सूत्र हुए।) प्र. भंते ! प्रदेश की अपेक्षा निगोद क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं, __या अनन्त हैं ? प. णिगोदजीवा णं भंते ! दवट्ठयाए किं संखेज्जा, __ असंखेज्जा,अणता? उ. गोयमा ! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अणंता। एवं पज्जत्तगा वि अपज्जत्तगा वि। एवं सुहमणिगोदजीवा वि पज्जत्तगा वि अपज्जत्तगा वि। बायरणिगोदजीवा विपज्जत्तगा वि अपज्जत्तगा वि। प. णिगोदा णं भंते ! पएसट्ठयाए किं संखेज्जा, असंखेज्जा, अणंता ? १. विया. स. २५, उ.५, सु. ४५-४६
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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