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________________ १३६ द्रव्यानुयोग-(१) ५२. आउक्कायजीवपण्णवणा प. से किंतं आउक्काइया? उ. आउक्काइया दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १. सुहुमआउक्काइया य, २. बायरआउक्काइया या प. से किं तं सुहुमआउक्काइया ? उ. सुहुमआउक्काइया दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १. पज्जत्तसुहुमआउक्काइया य, २. अपज्जत्तसुहुमआउक्काइया य। सेतं सुहुमआउक्काइयार प. से किं तं बायरआउक्काइया ? उ. बायरआउक्काइया अणेगविहा पण्णत्ता,तं जहा ओसा, हिमए, महिया, करए, हरतणूए, सुद्धोदए, सीतोदए, उसिणोदए, खारोदए, अंबिलोदए, लवणोदए, वारुणोदए,खीरोदए,घओदए,खोओदए, रसोदए, जे याऽवण्णे तहप्पगारा। ५२. अकायिक जीवों की प्रज्ञापना प्र. अकायिक जीव कितने प्रकार के हैं ? उ. अकायिक जीव दो प्रकार के हैं, यथा १. सूक्ष्म अप्कायिक, २. बादर अप्कायिक। प्र. सूक्ष्म अप्कायिक कितने प्रकार के हैं ? उ. सूक्ष्म अप्कायिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. पर्याप्त सूक्ष्म अकायिक, २. अपर्याप्त सूक्ष्म अप्कायिक। इस प्रकार सूक्ष्म अकायिक की प्ररूपणा हुई। प्र. बादर अकायिक कितने प्रकार के हैं ? उ. बादर-अकायिक अनेक प्रकार के कहे गए हैं, यथा ओस, हिम, महिका, ओले, हरतनु, शुद्धोदक, शीतोदक, उष्णोदक, क्षारोदक, अम्लोदक, लवणोदक, वारुणोदक, क्षीरोदक, घृतोदक, क्षोदोदक, रसोदक। ये तथा इसी प्रकार के और भी (रस-स्पर्शादि के भेद से) जितने प्रकार हों, (वे सब बादर-अप्कायिक समझने चाहिए।) २. बादर अप्कायिक संक्षेप में दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. पर्याप्तक, २. अपर्याप्तक। ३. उनमें से जो अपर्याप्तक हैं, वे असम्प्राप्त (अपनी पर्याप्तियों को पूर्ण नहीं कर पाए) हैं। ४. उनमें से जो पर्याप्तक हैं, उनके वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श की अपेक्षा से हजारों भेद होते हैं। उनके संख्यात लाख योनि प्रमुख २. ते समासओ दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १. पज्जत्तया य, २. अपज्जत्तया य। ३. तत्थ णंजे ते अपज्जत्तया तेणं असंपत्ता। ४. तत्थ णं जे ते पज्जत्तया एएसि णं वण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाई, संखेज्जाई जोणीपमुहसयसहस्साई। पज्जत्तगणिस्साए अपज्जत्तया वक्कमंति-जत्थ एगो तत्थ णियमा असंखेज्जा। MITRA९२) . से तंबायर आउक्काइया।सेतं आउकाइया। -पण्ण.प.१,सु.२६-२८ ५३. तेउक्कायजीवपण्णवणा प. से किंतं तेउक्काइया ? उ. तेउक्काइया दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १. सुहुमतेउक्काइया य, २. बायरतेउक्काइया य। प. से किं तं सुहुमतेउक्काइया ? उ. सुहुमतेउक्काइया दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १. पज्जत्तया य, २. अपज्जत्तया या६ पर्याप्तक जीवों के आश्रय से अपर्याप्तक आकर उत्पन्न होते हैं। जहां एक पर्याप्तक हैं, वहाँ नियम से (उसके आश्रय से अथवा उसके अनुपात में) असंख्यात अपर्याप्तक उत्पन्न होते हैं। यह बादर अप्कायिकों (का वर्णन हुआ साथ ही) अप्कायिक जीवों की (प्ररूपणा पूर्ण हुई।) ५३. तेजस्कायिक जीवों की प्रज्ञापना प्र. तेजस्कायिक जीव कितने प्रकार के हैं ? उ. तेजस्कायिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. सूक्ष्म तेजस्कायिक, २. बादर तेजस्कायिक। प्र. सूक्ष्म तेजस्कायिक जीव कितने प्रकार के हैं ? उ. सूक्ष्म तेजस्कायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. पर्याप्तक, २. अपर्याप्तक। १. ४. ५. २. (क) उत्त. अ. ३६, गा. ८४ (ख) जीवा. पडि.१.स.१६ (ग) ठाणं. अ.२ उ.१, सु. ६३ (क) उत्त. अ. ३६,गा.८४ (ख) जीवा. पडि. १, सु. १६ (ग) जीवा. पडि. ५, सु. २१० ठाणं अ. २ उ.१ सु. ६३ (क) उत्त. अ. ३६, गा.८५ (ख) जीवा. पडि. १, सु. १७ (क) उत्त. अ. ३६,गा. १०८ (ख) जीवा. पडि. १, सु. २३ (ग) ठाणं अ. २, उ. १, सु. ६३ (क) उत्त. अ.३६, गा.१०८ (ख) जीवा. पडि. १,सु. २४ (ग) जीवा. पडि. ५, सु. २१० ६
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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