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________________ जीव अध्ययन प. से किं तं खरबादरपुढविकाइया ? उ. खरबादरपुढविकाइया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा १.पुढवी य,२, सक्करा,३, वालुयाय, ४.उवले,५.सिया य,६-७,लोणूसे। ८.अय,९.तंब, १०.तउय, ११.सीसय, १२.रुप्प,१३.सुवण्णे य, १४. वइरे य॥ १५.हरियाले,१६.हिंगुलुए, १७.मणोसिला, १८-१९.सासगंजण,२०.पवाले। २१.अब्भपडल,२२.ऽभवालुय, बादरकाए मणिविहाणा॥ २३.गोमेज्जए य,२४.रुयए, २५.अंक २६.फलिहे य,२७.लोहियखे य। २८.मरगय,२९.मसारगल्ले, ३०. भुयमोयग, ३१. इंदनीले य॥ ३२.चंदण,३३.गेरूय,३४.हंसे, ३५.पुलए,३६.सोगंधिए य बोद्धव्वे। ३७.चंदप्पभ,३८. वेरूलिए ३९.जलकते,४०.सूरकते य॥ जे यावऽण्णे तहप्पगारा। - १३५ ) प्र. खर बादरपृथ्वीकायिक कितने प्रकार के हैं ? उ. खर बादरपृथ्वीकायिक अनेक प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. पृथ्वी, २. शर्करा (कंकर), ३. बालुका (बालू-रेत), ४. उपल (पाषाण-पत्थर), ५. शिला (चट्टान), ६. लवण (नमक), ७. ऊष (ऊषर, बंजरभूमि), ८. अयस् (लोहा), ९. ताम्बा, १०. त्रपुष् (रांगा), ११. सीसा, १२. रौप्य (चांदी), १३. सुवर्ण (सोना), १४. वज्र (हीरा), १५. हरताल, १६. हिंगलू, १७. मेनसिल, १८. सासग (पारा),१९.अंजन (सौवीर आदि),२०. प्रवाल (मूंगा), २१. अभ्रपटल (अभ्रक-भोड़ल), २२. अभ्रबालुका (अभ्रक-मिश्रित बालू)। बादरकाय में मणियों के प्रकार निम्न हैं२३. गोमेज्जक (गोमेदरल),२४.रुचकरल, २५.अंकरल, २६. स्फटिकरत्न, २७. लोहिताक्षरल, २८. मरकतरल,२९. मसारगल्लरल,३०.भुजमोचकरल, ३१. इन्द्रनीलमणि, ३२. चन्दनरल, ३३. गैरिकरत्न, ३४. हंसरल (हंसगर्भरल),३५. पुलकरत्न, ३६.सोगन्धिकरल, ३७. चन्दप्रभरल, ३८. वैडूर्यरल, ३९. जलकान्तमणि, ४०. सूर्यकान्तमणि। इनके अतिरिक्त जो अन्य भी तथाप्रकार के वैसे पद्मराग आदि मणिभेद हैं, वे भी खर बादरपृथ्वीकायिक समझने चाहिए। १. वे पूर्वोक्त सामान्य बादरपृथ्वीकायिक संक्षेप में दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. पर्याप्तक, २. अपर्याप्तक। २. उनमें से जो अपर्याप्तक हैं, वे स्वयोग्य पर्याप्तियों को प्राप्त नहीं है। ३. उनमें से जो पर्याप्तक है, इनके वदिश (वर्ण की अपेक्षा) से, गन्ध की अपेक्षा से, रस की अपेक्षा से और स्पर्श की अपेक्षा से हजारों (सहस्रशः) भेद (विधान) हैं। (उनके) संख्यात लाख योनिप्रमुख (योनि-द्वार) हैं। पर्याप्तकों के निश्राय (आश्रय) में, अपर्याप्तक (आकर) उत्पन्न होते हैं। जहां एक (पर्याप्तक) होता है, वहां (उसके आश्रय से) नियम से असंख्यात अपर्याप्तक (उत्पन्न होते हैं)। वह (पूर्वोक्त) खर बादरपृथ्वीकायिकों का निरूपण है। (उसके साथ ही) बादरपृथ्वीकायिकों का वर्णन हुआ है। पृथ्वीकायिकों की प्ररूपणा समाप्त हुई। १. ते समासओ दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १. पज्जत्तया य, २. अपज्जत्तया या २. तत्थ णं जे ते अपज्जत्तया तेणं असंपत्ता। ३. तत्थ णं जे ते पज्जत्तया एएसिणं वण्णादेसेणं,गंधादेसेणं, रसादेसेणं, फासादेसेणं, सहस्सग्गसो विहाणाई, संखेज्जाई जोणिप्पमुहसयसहस्साई। पज्जत्तगणिस्साए अपज्जत्तया वक्कमंति-जत्थ एगो तत्थ णियमा असंखेज्जा। सेतं खरबादरपुटविकाइया य ।। सेतं बायरपुढविकाइया। सेतं पुढविकाइया। १. (क) उत्त. अ. ३६, गा. ७२-७७ २. (क) जीवा. पडि. ५, सु. २१० (ख) जीवा. पडि. १, सु. १४ (ग) बादराणां लोक मध्य एवोपपातभावात्। (घ) जीवा. प्रति. १, सूत्र १५ की टीका में खरबादरपृथ्वीकायिकों के भेद-प्रभेद और शरीरादि तेईस द्वारों के कथन की सूचनानुसार यहाँ अकित किया है। उत्त. अ. ३६, गा.७० ३.
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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