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________________ जीव अध्ययन एवं जाव वेमाणिया। दुविहाणेरइया पण्णत्ता,तं जहा१.पज्जत्तगा चेव, २. अपज्जत्तगा चेव। एवं जाव वेमाणिया। दुविहाणेरइया पण्णत्ता, तं जहा१. सण्णी चेव, २. असण्णी चेव, एवं सव्वे विगलिंदियवज्जा जाव वाणमंतरा। दुविहाणेरइया पण्णत्ता, तं जहा१. भासगाचेव, २. अभासगा चेव। एवमेगिंदियवज्जा सव्वे। दुविहाणेरइया पण्णत्ता, तं जहा१. सम्मद्दिट्ठिया चेव, २. मिच्छद्दिट्ठिया चेव। एवमेगिंदियवज्जा सव्वे। दुविहाणेरइया पण्णत्ता, तंजहा१. परित्तसंसारिया चेव, २.अणंतसंसारिया चेव। एवं जाव वेमाणिया। दुविहाणेरइया पण्णत्ता, तंजहा१. संखेज्जकालसमयट्ठिइया चेव, ' २. असंखेज्जकालसमयट्ठिइया चेव। एवं-पंचेंदिया एगिंदियविगलिंदियवज्जा जाव वाणमंतरा। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जानना चाहिए। नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. पर्याप्तक, २. अपर्याप्तक। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जानना चाहिए। नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. संज्ञी, २. असंज्ञी। इसी प्रकार विकलेन्द्रियों को छोड़कर वाणव्यंतर पर्यन्त सभी पंचेन्द्रिय जीवों के लिए जानना चाहिए। नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. भाषक, २. अभाषक। इसी प्रकार एकेन्द्रियों को छोड़कर सभी जीवों के लिए जानना चाहिए। नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं-यथा१. सम्यग्दृष्टि, २. मिथ्यादृष्टि। इसी प्रकार एकेन्द्रियों को छोड़कर सभी जीवों के लिए जानना चाहिए। नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. परीतसंसारी, २. अनन्तसंसारी। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जानना चाहिए। नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. संख्यातकाल की स्थिति वाले, २. असंख्यातकाल की स्थिति वाले। इसी प्रकार एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रियों को छोड़कर सभी पंचेन्द्रिय जीवों के लिए जानना चाहिए। नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. सुलभबोधिक, २. दुर्लभबोधिक। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जानना चाहिए। नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कृष्णपाक्षिक, २. शुक्लपाक्षिक। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जानना चाहिए। नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. चरम २. अचरम। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जानना चाहिए। ४९. संसारसमापन्नक जीव प्रज्ञापना के भेद प्र. वह संसारसमापन्नक जीव प्रज्ञापना क्या है ? उ. संसारसमापन्नक जीव प्रज्ञापना पांच प्रकार की कही गई है, यथा१. एकेन्द्रिय संसारसमापन्नक जीव प्रज्ञापना, २. द्वीन्द्रिय संसारसमापन्नक जीव प्रज्ञापना, ३. त्रीन्द्रिय संसारसमापनक जीव प्रज्ञापना, ४. चतुरिन्द्रिय संसारसमापन्नक जीव प्रज्ञापना, . ५. पंचेन्द्रिय संसारसमापन्नक जीव प्रज्ञापना। दुविहाणेरइया पण्णत्ता, तं जहा१. सुलभबोहिया चेव, २. दुलभबोहिया चेव। एवं जाव वेमाणिया। दुविहाणेरइया पण्णत्ता, तं जहा१. कण्हपक्खिया चेव, २. सुक्कपक्खिया चेव। एवं जाव वेमाणिया। दुविहाणेरइया पण्णत्ता,तं जहा१. चरिमा चेव २. अचरिमा चेव। एवं जाव वेमाणिया। -ठाणं. अ. २, सु.६९ ४९.संसारसमापन्न जीवपण्णवणाया भेया प. से किं तं संसारसमावण्णजीवपण्णवणा? उ. संसारसमावण्णजीवपण्णवणा पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा १. एगिंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा, २. बेंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा, ३. तेंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा, ४. चउरिंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा, ५. पंचेंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा। -पण्ण.प.१.सु.१८
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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