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________________ १३२ द्रव्यानुयोग-(१) दं.७. द्वीपकुमार देवों की वर्गणा एक है। दं.८. उदधिकुमार देवों की वर्गणा एक है। दं. ९. दिशाकुमार देवों की वर्गणा एक है। दं.१०. वायुकुमार देवों की वर्गणा एक है। दं.११.स्तनितकुमार देवों की वर्गणा एक है। दं. १२. पृथ्वीकायिक जीवों की वर्गणा एक है। दं. १३. अप्कायिक जीवों की वर्गणा एक है। दं.१४. तेजस्कायिक जीवों की वर्गणा एक है। दं. १५. वायुकायिक जीवों की वर्गणा एक है। दं. १६. वनस्पतिकायिक जीवों की वर्गणा एक है। दं.१७. द्वीन्द्रिय जीवों की वर्गणा एक है। दं.१८. त्रीन्द्रिय जीवों की वर्गणा एक है। दं.१९. चतुरिन्द्रिय जीवों की वर्गणा एक है। दं.२०. पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की वर्गणा एक है। दं.२१. मनुष्यों की वर्गणा एक है। दं. २२. वाणव्यंतर देवों की वर्गणा एक है। दं.२३. ज्योतिष्क देवों की वर्गणा एक है। दं. २४. वैमानिक देवों की वर्गणा एक है। दं.७, एगा दीवकुमाराणं वग्गणा। दं.८,एगा उदहिकुमाराणं वग्गणा। दं.९,एगा दिसाकुमाराणं वग्गणा। दं.१०,एगा वायुकुमाराणं वग्गणा। दं.११,एगा थणियकुमाराणं वग्गणा। दं.१२,एगा पुढविकाइयाणं वग्गणा। दं.१३, एगा आउकाइयाणं वग्गणा। दं.१४,एगा तेउकाइयाणं वग्गणा। दं.१५,एगा वाउकाइयाणं वग्गणा। दं.१६,एगा वणस्सइकाइयाणं वग्गणा। दं.१७,एगा बेइंदियाणं वग्गणा। दं.१८,एगा तेइंदियाणं वग्गणा। दं.१९,एगा चउरिंदियाणं वग्गणा। दं.२०,एगा पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं वग्गणा। दं.२१,एगा मणुस्साणं वग्गणा। दं.२२, एगावाणमंतराणं वग्गणा। दं.२३,एगा जोइसियाणं वग्गणा। दं.२४,एगा वेमाणियाणं वग्गणा। -ठाणं. अ. १, सु. ४१ (१) ४८. चउवीसदंडग विवक्खया जीवाणं दुविहत्त परूवणं दुविहाणेरइया पण्णत्ता,तं जहा१. भवसिद्धिया चेव, २. अभवसिद्धिया चेव। एवं जाव वेमाणिया दुविहाणेरइया पण्णत्ता,तं जहा१. अणंतरोववण्णग्गा चेव, २. परंपरोववण्णगा चेव। एवं जाव वेमाणिया । दुविहाणेरइया पण्णत्ता,तं जहा१. गतिसमावण्णगाचेव, २. अगतिसमावण्णग्गा चेव। एवं जाव वेमाणिया। दुविहाणेरइया पण्णत्ता,तं जहा१. पढमसमओववण्णगा चेव, २. अपढमसमओववण्णगाचेव। एवं जाव वेमाणिया। दुविहाणेरइया पण्णत्ता,तं जहा१. आहारगा चेव, २. अणाहारगा चेव। एवं जाव वेमाणिया। दुविहाणेरइया पण्णत्ता, तं जहा१. उस्सासगा चेव, २. णो उस्सासगा चेव। एवं जाव वेमाणिया। दुविहाणेरइया पण्णत्ता,तं जहा१. सइंदिया चेव, २. अणिंदिया चेव। ४८. चौबीसदंडक की विवक्षा से जीवों के द्विविधत्व का प्ररूपण नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. भवसिद्धिक, २. अभवसिद्धिक। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जानना चाहिए। नैरयिक दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. अनन्तरोपपन्नक, २. परम्परोपपन्नक। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जानना चाहिए। नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. गतिसमापन्नक, २. अगतिसमापन्नक। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जानना चाहिए। नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. प्रथमसमयोपपन्नक, २. अप्रथमसमयोपपन्नक। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जानना चाहिए। नैरयिक दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. आहारक, २. अनाहारक। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जानना चाहिए। नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. उच्छ्वासक, २. नोउच्छ्वासक। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जानना चाहिए। नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं-यथा१. सइन्द्रिय, २. अनिन्द्रिय।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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