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________________ १२६ द्रव्यानुयोग-(१) ४. कोई ऐसा कहते हैं कि-संसारसमापन्नक जीव पांच प्रकार के कहे गये हैं। ५-९. इसी प्रकार के अभिलाप से यावत्१०. कोई ऐसा कहते हैं कि-संसारसमापन्नक जीव दस प्रकार के कहे गये हैं। ३४.संसार समापन्नक जीवों के भेदों का विस्तार से प्ररूपण(१) दो प्रकार के जीव जो यह कहते हैं कि-संसार समापन्नक जीव दो प्रकार के हैं, उनका कथन इस प्रकार है, यथा१. त्रस २. स्थावर। (२) तीन प्रकार के जीव जो यह कहते हैं कि संसारसमापन्नक जीव तीन प्रकार के हैं, उनका कथन इस प्रकार है, यथा१.स्त्री, २. पुरुष, ३. नपुंसक। ४. एगे एवमाहंसु-पंचविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, ५-९. एएणं अभिलावेणं जाव १०. दस विहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता। -जीवा. पीडि.१ सु.८ ३४.संसारसमावण्णगा जीवाणं वित्थरओ भेय परूवणं(१) दुविहा जीवा तत्थ णं जे ते एवमाहंसु दुविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता,ते एवमाहंसु,तं जहा- . २. तसा चेव २. थावरा चेव। -जीवा. पडि.१, सु.९ (२) तिविहा जीवा तत्थ णं जे ते एवमाहंसु तिविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, ते एवमाहंसु-तं जहा१. इत्थी, २. पुरिसा, ३.णपुंसगा। , -जीवा. पडि.२, सु.४४ ३५. इत्थीणं भेयप्पभेया प. से किं तं इत्थीओ? उ. इत्थीओ तिविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा १. तिरिक्खजोणित्थीओ, २. मणुस्सित्थीओ, ३. देविस्थीओ३| -जीवा. पडि.१, सु.४५ (१) (१) तिरिक्खजोणित्थीओप. से किं तं तिरिक्खजोणित्थीओ? उ. तिरिक्खजोणित्थीओ तिविहाओ पण्णत्ताओ,तं जहा १. जलयरीओ, २.थलरीओ, ३.खहयरीओ। प. से किं तंजलयरीओ? उ. जलयरीओ पंचविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा १ मच्छीओ जाव ५ सुंसमारीओ। प. से किं तं थलयरीओ? उ. थलयरीओ दुविहाओ पण्णत्ताओ,तं जहा १. चउप्पईओ य, २. परिसप्पीओ य। प. से किं तं चउप्पईओ? उ. चउप्पईओ चउव्विहाओ पण्णत्ताओ,तं जहा १ एगखुरीओ जाव ४ सणएफईओ। ३५. स्त्रियों के भेद प्रभेद प्र. स्त्रियां कितने प्रकार की हैं? उ. स्त्रियां तीन प्रकार की कही गई हैं, यथा १. तिर्यक्योनिक स्त्रियाँ, २. मनुष्यस्त्रियां, ३. देवस्त्रियां। (१) तिर्यक्योनिकस्त्रियां प्र. तिर्यक्योनिकस्त्रियां कितने प्रकार की हैं ? उ. तिर्यक्योनिकस्त्रियां तीन प्रकार की कही गई हैं, यथा १. जलचरस्त्रियां, २. स्थलचरस्त्रियां, ३. खेचरस्त्रियां। प्र. जलचरियां कितने प्रकार की है? उ. जलचरियां पांच प्रकार की कही गई हैं, यथा १ मच्छियां यावत् ५ सुसमारिकाएं। प्र. थलचरियां कितने प्रकार की हैं? उ. थलचरियां दो प्रकार की कही गई हैं, यथा१. चतुष्पदियां, २. परिसर्पिणीयां। प्र. चतुष्पदीयां कितने प्रकार की हैं ? उ. चतुष्पदीयां चार प्रकार की कही गई हैं, यथा १ एक खुर वाली यावत् ४ नख वाली। १. (क) ठाणं. अ. २, उ. ४, सु. ११२/१ २. (क) जीवा. पडि. १, सु. १० ३. (क) जीवा. पडि. १, सु. २२ ४. (क) ठाणं. अ. ३, उ. २, सु. १७० (ख) उत्त. अ. ३६, गा. ६८ (ख) उत्त. अ. ३६, गा. ६९-१०६ (ख) उत्त. अ. ३६, गा. १०७ (ख) ठाणं. अ. ३, उ. १ सु. १३९ (१-२)
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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