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________________ जीव अध्ययन ३१. सिज्झमाणजीवाणं संघयण संठाण ओगाहणा आउ परूवणं प. जीवाणं भंते ! सिज्झमाणा कयरंमि संघयणे सिझंति ? उ. गोयमा ! वइरोसभणारायसंघयणे सिझंति। प. जीवाणं भंते ! सिज्झमाणा कयरंमि संठाणे सिझंति ? उ. गोयमा ! छण्हं संठाणाणं अण्णयरे संठाणे सिझंति। - १२५ ) ३१. सिद्ध होते हुए जीवों के संहनन संस्थान अवगाहना और आय का प्ररूपणप्र. भंते ! सिद्ध होते हुए जीव किस संहनन से सिद्ध होते हैं ? उ. गौतम ! वे वज्रऋषभनाराच संहनन से सिद्ध होते हैं। प्र. भंते ! सिद्ध होते हुए जीव किस संस्थान (दैहिक आकार) से सिद्ध होते हैं? उ. गौतम ! छह संस्थानों में से किसी एक संस्थान से सिद्ध होते हैं। प्र. भंते ! सिद्ध हुए जीव कितनी शरीर अवगाहना (ऊंचाई) से सिद्ध होते हैं? उ. गौतम ! जघन्य सात हाथ और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष की अवगाहना से सिद्ध होते हैं। प्र. भंते ! सिद्ध होते हुए जीव किस आयु से सिद्ध होते हैं ? उ. गौतम ! जघन्य साधिक आठ वर्ष की आयु से तथा उत्कृष्ट पूर्व कोटि की आयु से सिद्ध होते हैं। प. जीवा णं भंते ! सिज्झमाणा कयरंमि उच्चत्ते सिझंति? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सत्तरयणीए, उक्कोसेणं पंचधणुसइए सिझंति। प. जीवाणं भंते ! सिज्झमाणा कयरम्मि आउए सिझंति? उ. गोयमा ! जहण्णेणं साइरेगट्ठवासाउए, उक्कोसेणं पुव्वकोडियाउए सिझंति। -उव.सु.१५६-१५९ ३२. विविह विवक्खया एगसमए सिज्झमाणाणं जीवाणं संखा परूवणंउक्कोसोगाहणाए य जहन्नमज्झिमाइ य। उड्ढे अहे य तिरियं च, समुद्दम्मि जलम्मि य॥ ३२. विविध विवक्षाओं से एक समय में सिद्ध होने वाले जीवों की संख्या का प्ररूपणउत्कृष्ट, जघन्य और मध्यम अवगाहना में तथा ऊर्ध्वलोक अधोलोक और तिर्यक्लोक में, एवं समुद्र तथा अन्य जलाशयों में जीव सिद्ध होते हैं। एक समय में (अधिक से अधिक) नपुंसकों में से दस, स्त्रियों में से बीस और पुरुषों में से एक सौ आठ जीव सिद्ध होते हैं। एक समय में चार गृहस्थलिंग से, दस अन्यलिंग से तथा एक सौ आठ जीव स्वलिंग से सिद्ध हो सकते हैं। दस चेव नपुंसेसु, वीसे इत्थियासु य। पुरिसेसु य अट्ठसयं, समएणेगेण सिज्झई॥ चत्तारि य गिहिलिंगे अन्नलिंगे दसेव य। सलिंगेण य अट्ठसयं, समएणेगेण सिज्झई। उक्कोसोगाहणाए य, सिज्झन्ते जुगवं दुवे। चत्तारि जहन्नाए,जवमज्झऽत्तरं सयं॥ चउरुड्ढलोए य दुवे समुद्दे, तओ जले वीसमहे तहेव। सयं च अद्रुत्तर तिरियलोए,समएणेगेण उ सिज्झई॥ -उत्त.अ.३६ गा.४९-५४ (एक समय में) उत्कृष्ट अवगाहना में दो, जघन्य अवगाहना में चार और मध्यम अवगाहना में एक सौ आठ जीव सिद्ध हो सकते हैं। एक समय में ऊर्ध्वलोक में चार, समुद्र में दो, जलाशय में तीन, अधोलोक में बीस एवं तिर्यक् लोक में एक सौ आठ जीव सिद्ध हो सकते हैं। ३३. संसारसमापन्नग जीवाणं भेय परूवणस्स उक्खेवो प. से किं तं संसारसमापन्नकजीवाभिगमे? उ. संसारसमावण्णएसु णं जीवेसु इमाओ णव पडिवत्तीओ एवमाहिज्जंति,तं जहा१. एगे एवमाहंसु-दुविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, २. एगे एवमाहंसु-तिविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, ३. एगे एवमाहंसु-चउव्विहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, ३३. संसार समापन्नक जीवों के भेद प्ररूपण का उत्क्षेप प्र. संसारसमापन्नक जीवाभिगम क्या है? उ. संसारसमापन्नक जीवों की ये नौ प्रतिपत्तियां कही गई हैं, यथा१. कोई ऐसा कहते हैं कि-संसारसमापन्नक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं, २. कोई ऐसा कहते हैं कि संसार समापन्नक जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं। ३. कोई ऐसा कहते हैं कि-संसारसमापन्नक जीव चार प्रकार के कहे गये हैं। १. विया.स.११,उ.९,सु.३३
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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