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द्रव्यानुयोग-(१) १२. अन्यलिंग-सिद्धों की वर्गणा एक है। १३. गृहिलिंग-सिद्धों की वर्गणा एक है। १४. एक सिद्धों की वर्गणा एक है। १५. अनेक सिद्धों की वर्गणा एक है।
दूसरे समय के सिद्धों की वर्गणा एक है यावत् अनन्त समय के सिद्धों की वर्गणा एक है।
१२२ १२. एगा अण्णलिंगसिद्धाणं वग्गणा। - १३. एगा गिहिलिंगसिद्धाणं वग्गणा। १४. एगा एक्कसिद्धाणं वग्गणा। १५. एगा अणिक्कसिद्धाणं वग्गणा।
एगा अपढमसमय सिद्धाणं वग्गणा जाव एगा अणंतसमयसिद्धाणं वग्गणा।
-ठाणं.अ.१ सु.४२ २५. सिद्धाणं अणोवमं सोक्ख परूवणं
ण वि अस्थि माणुसाणं, तं सोक्खं ण वि य सव्वदेवाणं। जं सिद्धाणं सोक्खं,अव्वाबाहं उवगयाणं॥ जं देवाणं सोक्खं सव्वद्धा पिंडियं अणंतगुणं। ण य पावइ मुत्तिसुहं, ण ताहिं वग्गवग्गूहिं॥ सिद्धस्स सुहो रासी, सव्वद्धा पिंडिओ जइ हवेज्जा। सोणंतवग्गभइओ, सव्वागसि ण माएज्जा॥
जह णाम कोइ मिच्छो, नगरगुणे बहुविहे वियाणंतो। न चएइ परिहेउं, उवमाए तहिं असंतीए॥ .
इय सिद्धाणं सोक्खं,अणोवमं णस्थि तस्स ओवम्म। किंचि विसेसेणेत्तो, ओवम्ममिणं सुणह वोच्छं।
जह सव्वकामगुणियं, पुरिसो भोत्तूण भोयणं कोई। तण्हाछुहाविमुक्को, अच्छेज्ज जहा अमियतित्तो॥ ,
२५. सिद्धों के अनुपम सुख का प्ररूपण
सिद्धों को जो निराबाध शाश्वतसुख प्राप्त है वह न मनुष्यों को प्राप्त है और न वह सुख सभी देवताओं को प्राप्त है। तीन काल से गुणित अनन्त देव सुख यदि अनन्त बार वर्ग से वर्गित किया जाए तो भी वह मुक्ति सुख के समान नहीं हो सकता है। एक सिद्ध के सुख को तीनों कालों से गुणित करने पर जो सुख राशि निष्पन्न हो, उसे यदि अनन्त वर्ग से विभाजित किया जाए तो भी सम्पूर्ण आकाश में समाहित नहीं हो सकती। जैसे कोई म्लेच्छ वनवासी मनुष्य नगर के अनेकविध गुणों को जानता हुआ भी वन में वैसी उपमा न होने से उस (नगर) के गुणों का वर्णन नहीं कर सकता। उसी प्रकार सिद्धों का सुख अनुपम है, उसकी कोई उपमा नहीं है। फिर भी विशेष रूप से उपमा द्वारा उसे समझाया जा रहा है, जो मुझसे सुनोजैसे कोई पुरुष अपने द्वारा इच्छित सभी विशेषताओं से युक्त भोजन करके भूख प्यास से मुक्त होता है और असीम तृप्ति का अनुभव करता है। उसी प्रकार सर्वकालतृप्त अनुपम शान्तियुक्त सिद्ध भगवान् शाश्वत तथा अव्याबाध परम सुख में निमग्न रहते हैं। वे सिद्ध हैं-उन्होंने अपने सारे प्रयोजन सिद्ध कर लिए हैं वे बुद्ध हैं-केवलज्ञान द्वारा समस्त पदार्थों का बोध कर लिया है, वे पारंगत हैं-संसार सागर को पार कर चुके हैं, वे परंपरागत हैं-परंपरा से मोक्ष को प्राप्त कर चुके हैं, वे कर्मकवच से मुक्त हो चुके हैं। वे अजर हैं-वृद्धावस्था से रहित हैं। वे अमर हैं-मृत्युरहित हैं तथा वे असंग हैं-सब प्रकार की आसक्तियों से मुक्त हैं। सिद्ध सब दुखों को पार कर चुके हैं, जन्म, बुढ़ापा तथा मृत्यु के बंधन से मुक्त हैं। निर्बाध, शाश्वत सुख का अनुभव करते हैं। अनुपम सुख सागर में लीन, निर्बाध अनुपम मुक्तावस्था प्राप्त किये हुए सिद्ध भविष्य काल में अनन्त सुख को प्राप्त करके सुखी रहते हैं।
इय सव्वकालतित्तो, अतुलं निव्वाणमुवगया सिद्धा। सासयमव्वाबाहं, चिट्ठति सुही सुहं पत्ता॥ सिद्धत्ति य बुद्धत्ति य,पारगयत्ति य परंपरगयत्ति। उम्मुक्ककम्मकवया, अजरा अमरा असंगा य॥
णित्थिण्णसव्वदुक्खा,जाइ-जरा-मरणबंधणविमुक्का। अव्वाबाहं सुक्खं,अणुहोंति सासयं सिद्धा' ॥
अतुलसुहसागरगया, अव्वाबाहं अणोवमं पत्ता। सव्वमणागयमद्धं, चिट्ठति सुही सुहं पत्ता॥
-उव. सु. १८०-१८९
१. विया.स.११,उ.९,सु.३३