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________________ १०६ पुरथिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, दाहिणाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, पच्चत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उत्तराओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उड्ढाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अहाओ दिसाओ वा आगओ अहमंसि, अन्नयरीओ दिसाओ वा अणुदिसाओ वा आगओ अहंमसि। एवमेगेसिंणो णायं भवइअस्थि मे आया उववाइए, णत्थि मे आया उववाइए, के अहं आसी, के वा इओ चुओ पेच्चा भविस्सामि। ( द्रव्यानुयोग-(१)) मैं पूर्व दिशा से आया हूँ, अथवा दक्षिण दिशा से आया हूँ, अथवा पश्चिम दिशा से आया हूँ, अथवा उत्तर दिशा से आया हूँ, अथवा ऊर्ध्व दिशा से आया हूँ, अथवा अधोदिशा से आया हूँ, अथवा किसी अन्य दिशा से या अनुदिशा (विदिशा) से आया हूँ। इसी प्रकार कुछ प्राणियों को यह भी ज्ञान नहीं होतामेरी आत्मा जन्म धारण करने वाली है, अथवामेरी आत्मा जन्म धारण करने वाली नहीं है, . मैं (पूर्व जन्म में) कौन था? . मैं यहां से च्युत होकर (आयुष्य पूर्ण करके) अगले जन्म में क्या होऊँगा? कोई प्राणी अपनी स्वमति से, दूसरे के कहने से अथवा दूसरे से सुनकर के यह जान लेता है, यथामैं पूर्वदिशा से आया हूँ इसी प्रकार दक्षिण दिशा से, पश्चिम दिशा से, उत्तर दिशा से, ऊर्ध्व दिशा से, अधोदिशा से अथवा अन्य किसी दिशा या विदिशा से आया हूँ। सेज्ज पुण जाणेज्जा-सहसम्मुइयाए, परवागरणेणं, अण्णेसिं वा अंतिए सोच्चा,तं जहापुरत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि एवं दक्खिणाओ वा, पच्चत्थिमाओ वा, उत्तराओ वा, उड्ढाओ वा, अहाओ वा, अन्नयरीओ दिसाओ वा अणुदिसाओ वा आगओ अहमंसि। एवमेगेसिं जंणायं भवइ-अस्थि मे आया उववाइए,जो इमाओ दिसाओ वा अणुदिसाओ वा अणुसंचरइ, सव्वाओ दिसाओ सव्वाओ अणुदिसाओ जो आगओ अणुसंचरइ सोऽहं। से आयावाई लोगावाई कम्मावाई किरियावाई। _ -आया. सु. १, अ.१, सु. १-३ ४. दिळंतपुव्वं लोगपएसा जीवस्स जम्म-मरणेणं पुट्ठत्त परूवणंप. एयंसि णं भंते ! एमहालयंसि लोगंसि अस्थि केइ परमाणुपोग्गलमेत्ते वि पएसे जत्थ णं अयं जीवे न जाए वा, न मए वा वि? उ. गोयमा ! नो इणठे समठे। प. से केणठे णं भंते ! एवं वुच्चइ 'एयंसि णं एमहालयंसि लोगंसि नत्थि केइ परमाणु पोग्गलमेत्ते वि पएसे जत्थ णं अयं जीवे न जाए वा न मए वा वि? उ. गोयमा ! से जहानामए केइ पुरिसे अयासयस्स एगं महं अयावयं करेज्जा, से णं तत्थ जहन्नेणं एक्कं वा, दो वा, तिण्णि वा, उक्कोसेणं अयासहस्सं पक्खिवेज्जा, ताओ णं तत्थ पउरगोयराओ, पउरपाणियाओ, कुछ प्राणियों को यह भी ज्ञात होता है कि-मेरी आत्मा भवान्तर में अनुसंचरण करने वाली है, जो इन दिशाओं और अनुदिशाओं में कर्मानुसार परिभ्रमण करती है। जो इन सब दिशाओं और विदिशाओं में गमनागमन करती है, वही मैं (आत्मा) हूँ। जो ऐसा जानता है वही आत्मावादी, लोकवादी, कर्मवादी एवं क्रियावादी है। ४. दृष्टांतपूर्वक लोक के प्रदेश में जीव के जन्म मरण द्वारा स्पृष्टत्व का प्ररूपणप्र. भंते ! इतने बड़े लोक में क्या कोई परमाणु पुद्गल जितना भी आकाशप्रदेश ऐसा है, जहां पर इस जीव ने जन्म-मरण न किया हो? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "इतने बड़े लोक में परमाणु पुद्गल जितना कोई भी आकाश प्रदेश ऐसा नहीं है, जहाँ इस जीव ने जन्म मरण न किया हो? उ. गौतम ! जैसे कोई पुरुष सौ बकरियों के लिए एक बड़ा बकरियों का बाड़ा बनाए। उसमें वह एक, दो या तीन और अधिक से अधिक एक हजार बकरियों को रखे। वहाँ उनके लिए घास-चारा चरने की प्रचुर भूमि और पानी की व्यवस्था हो। यदि वे बकरियां वहां कम से कम एक, दो या तीन दिन और अधिक से अधिक छह महीने तक रहें तो जहन्नेणं एगाहं वा, दुयाहं वा, तियाहं वा उक्कोसेणं छम्मासे परिवसेज्जा,
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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