SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०० उ. हंता, गोयमा ! चिट्ठति। प. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ - "अस्थि णं जीवा य पोग्गला य अन्नमन्नबद्धा जाव अन्नमन्न घडत्ताए चिट्ठति?" गोयमा ! से जहानामए हरए सिया पुण्णे पुण्णप्पमाणे वोलट्टमाणे वोसट्टमाणे समभरघडत्ताए चिट्ठइ, अहे णं केइ पुरिसे तंसि हरदसि एगं महं नावं सयासवं सयछिड्ड ओगाहेज्जा। द्रव्यानुयोग-(१) उ. हां, गौतम ! ये परस्पर इसी प्रकार रहे हुए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "जीव और पुद्गल परस्पर सम्बद्ध हैं यावत् परस्पर गाढ़ होकर रहे हुए हैं ?" उ. गौतम ! जैसे कोई एक तालाब हो वह जल से पूर्ण हो, पानी से लबालब भरा हुआ हो, पानी से छलक रहा हो, पानी बढ़ रहा हो और घड़े के समान पानी से भरा हुआ हो। उस तालाब में कोई पुरुष जिसमें छोटे और बड़े सैकड़ों छिद्र हों ऐसी बड़ी नौका को डाल दे तोहे गौतम ! ऐसी वह नौका उन छिद्रों द्वारा पानी से भरती हुई जल से परिपूर्ण पानी से लबालब पानी से छलकती बढ़ती हुई क्या भरे हुए घड़े के समान हो जाती है? हां गौतम ! हो जाती है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि '-जीव और पुद्गल परस्पर सम्बद्ध हैं यावत् परस्पर गाढ होकर रहे हुए हैं। से नूणं गोयमा ! सा णावा तेहिं आसवद्दारेहि आपूरमाणी आपूरमाणी पुण्णा पुण्णप्पमाणा वोलट्टमाणा वोसट्टमाणा समभरघडत्ताए चिट्ठइ? हंता, गोयमा ! चिट्ठइ। से तेणठेणं गोयमा !एवं वुच्चइ'अस्थि णं जीवा य पोग्गला य अन्नमन्नबद्धा जाव अन्नमनघडताए चिट्ठति। -विया स.१,उ.६, सु.२६
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy