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________________ जीवाजीव अध्ययन प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ पाणाइवाए जाव सव्वे य बायरबोंदिधरा कलेवरा एए णं दुविहा जीवदव्वा य अजीवदव्वा य अत्थेगइया जीवाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति, अत्थेगइया जीवाणं परिभोगत्ताए नो हव्वमागच्छंति ? उ. गोयमा ! पाणाइवाए जाव मिच्छादसणसल्ले, पुढविकाइए जाव वणस्सकाइए सव्वे य बायरबोंदिधरा कलेवरा एए णं दुविहा जीवदव्वा य अजीवदव्वा य, जीवाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति। . पाणाइवायवेरमणे जाव मिच्छादसणसल्लविवेगे, धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए जाव परमाणुपोग्गले, सेलेसिं पडिवन्नए अणगारे, एए णं दुविहा जीवदव्वा य अजीवदव्वा यजीवाणं परिभोगत्ताए नो हव्वमागच्छंति। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि प्राणातिपात से सर्व स्थूलकाय धारक कलेवर पर्यन्त जो जीव द्रव्य और अजीवद्रव्य रूप दो प्रकार हैं इनमें से कई द्रव्य तो जीवों के परिभोग में आते हैं और कई जीवों के परिभोग में नहीं आते हैं? उ. गौतम ! प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शन शल्य, पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक और सभी स्थूलकाय धारक कलेवर ये सब जीवद्रव्य और अजीव द्रव्य रूप दोनों प्रकार के हैं और जीवों के परिभोग में आते हैं। प्राणातिपात विरमण यावत् मिथ्यादर्शनशल्य विवेक, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, यावत् परमाणु पुद्गल एवं शैलेशी अवस्था प्राप्त अनगार ये सब जीवद्रव्य और अजीवद्रव्य रूप दोनों प्रकार के हैं और जीवों के परिभोग में नहीं आते हैं।' इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है किप्राणातिपात से सर्वस्थूलकाय धारक कलेवर पर्यन्त जो जीवद्रव्य और अजीव द्रव्य रूप दो प्रकार के हैं इनमें से कई द्रव्य तो जीवों के परिभोग में आते हैं और कई जीवों के परिभोग में नहीं आते हैं। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइपाणाइवाए जाव सव्वे य बायर बोंदिधरा कलेवरा एएणं दुविहा जीवदव्वा य अजीवदव्वा य अत्थेगइया जीवाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति अत्थेगइया जीवाणं परिभोगत्ताए नो हव्वमागच्छति। -विया. स.१८, उ.४, सु.२ ५. रोहाअणगारपण्हुत्तरे जीवाजीवाइ दव्वाणं सासयत्तं अणाणुपुवित्त परूवणंप. पुव्विं भंते ! जीवा? पच्छा अजीवा? पुव्विं अजीवा? पच्छा जीवा? उ. रोहा ! जीवा य अजीवा य पव्विं पेते, पच्छा पेते दो वि एते सासया भावा अणाणुपुव्वी एसा रोहा ! एवं भवसिद्धिया य अभवसिद्धिया य, सिद्धि असिद्धि, सिद्धा असिद्धा। प. पुव्विं भंते ! अंडए? पच्छा कुक्कुडी? पुव्विं कुक्कुडी? पच्छा अंडए? उ. रोहा ! से णं अंडए कओ? भगवं!तं कुक्कुडीओ। सा णं कुक्कुडी कओ? भंते ! अंडगाओ। एवामेव रोहा से य अंडए सा य कुक्कुडी, पुव्विं पेते, पच्छा पेते,दो वि एते सासया भावा अणाणुपुव्वी एसा रोहा। -विया. स.१., उ.६, सु. १४-१६ ६. हरयगत नावा दिट्टतेण जीवपोग्गलाणमन्नोन्नबद्धत्ता परूवणंप. अस्थि णं भंते ! जीवा य पोग्गला य अन्नमन्नबद्धा, अन्नमन्नपुट्ठा, अन्नमन्नमोगाढा, अन्नमन्नसिणेहपडिबद्धा, अन्नमन्नघडताए चिट्ठति? ५. रोह अणगार के प्रश्नोत्तरों में जीव-अजीव आदि के शाश्वतत्व और अनानुपूर्वत्व का प्ररूपणप्र. भंते ! क्या पहले जीव और पीछे अजीव हैं या पहले अजीव और पीछे जीव हैं? उ, रोहा ! जीव और अजीव पहले भी हैं और पीछे भी हैं, ये दोनों शाश्वतभाव हैं। हे रोहा ! इन दोनों में पहले पीछे का क्रम नहीं है। इसी प्रकार भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक, सिद्धि और असिद्धि तथा सिद्ध और असिद्ध (संसारी) जीवों के विषय में भी जानना चाहिए। प्र. भंते ! पहले अण्डा और फिर मुर्गी है ? या पहले मुर्गी और फिर अण्डा है? उ. (भगवान्) हे रोहा ! यह अण्डा कहां से आया है? (रोह-) भंते ! वह मुर्गी से आया। (भगवान्) वह मुर्गी कहां से आई? (रोहा) भंते ! वह अण्डे से हुई। (भगवान्) इसी प्रकार हे रोहा ! मुर्गी और अण्डा पहले भी हैं और पीछे भी हैं। ये दोनों शाश्वतभाव हैं। हे रोहा ! इन दोनों में पहले पीछे का क्रम नहीं हैं। ६. हृदगत नौका के दृष्टान्त द्वारा जीव और पुद्गलों के अन्योन्यबद्धत्वादि का प्ररूपणप्र. भंते ! क्या जीव और पुद्गल परस्पर संबद्ध हैं ? परस्पर एक दूसरे से स्पृष्ट हैं ? परस्पर गाढ़ सम्बद्ध हैं, परस्पर स्निग्धता से प्रतिबद्ध हैं, परस्पर घट्टित (गाढ) हो कर रहे हुए हैं ?
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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