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________________ द्रव्यानुयोग-(१) विशेष-लेश्यापरिणाम से तेजोलेश्यी, पद्मलेश्यी और शुक्ललेश्यी हैं। यह जीव परिणामों की प्ररूपणा है। ( ९४ णवर-लेस्सा परिणामेणं तेउलेस्सा वि, पम्हलेस्सा वि, सुक्कलेस्सा वि, सेत्तंजीव परिणामे। -पण्ण.प.१३,सु.९३८-९४६ ४. अजीव परिणामभेयप्पभेय परूवणं प. अजीवपरिणामेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! दसविहे पण्णत्ते,तं जहा १. बंधणपरिणामे, २. गइपरिणामे, ३. संठाणपरिणामे, ४. भेदपरिणामे, ५. वण्णपरिणामे, ६. गंधपरिणामे, ७. रसपरिणामे, ८. फासपरिणामे, ९. अगुरुलहुयपरिणामे, १०. सद्दपरिणामे।' प. १.बंधपरिणामे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते,तंजहा १. णिद्धबंधपरिणामे य, २. लुक्खबंधपरिणामे य। गाहाओसमणिद्धयाए बंधो न होई, समलुक्खयाए विन होइ। वेमायणिद्ध - लुक्खत्तणेण,बंधो उ खंधाणं ॥१॥ ४. अजीव परिणामों के भेद प्रभेदों का प्ररूपण प्र. भंते ! अजीवपरिणाम कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! (अजीवपरिणाम) दस प्रकार का कहा गया है, यथा १. बन्धनपरिणाम, २. गतिपरिणाम, ३. संस्थानपरिणाम, ४. भेदपरिणाम, ५. वर्णपरिणाम, ६. गंध परिणाम, ७. रस परिणाम, ८. स्पर्श परिणाम, ९. अगुरुलघु परिणाम, १०. शब्द परिणाम। प्र. १. भंते ! बन्धनपरिणाम कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! (बन्धनपरिणाम) दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. स्निग्धबन्धपरिणाम २. रुक्षबन्धपरिणाम। गाथार्थसमान स्निग्ध गुण वालों का बन्ध नहीं होता और समान रुक्ष गुण वालों का भी बन्ध नहीं होता। विमात्रा (विषम) गुण वाले स्निग्ध और रूक्ष से स्कन्धों का बन्ध होता है। दो गुण अधिक स्निग्ध के साथ स्निग्ध तथा दो गुण अधिक रुक्ष के साथ रुक्ष का बंध होता है। इसी प्रकार जघन्य गुण को छोड़कर चाहे वह सम हो या विषम हो स्निग्ध का रुक्ष के साथ बन्ध होता है, प्र. २. भंते ! गतिपरिणाम कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! (गतिपरिणाम) दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. स्पृशद्गतिपरिणाम, २. अस्पृशद्गतिपरिणाम, अथवा १. दीर्घगतिपरिणाम, २. ह्रस्वगतिपरिणाम। प्र. ३. भंते ! संस्थानपरिणाम कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! (संस्थानपरिणाम) पांच प्रकार का कहा गया है, णिद्धस्स णिद्धेण दुयाहिएणं, लुक्खस्स लुक्खेण दुयाहिएणं। णिद्धस्स लुक्खेण उवेइ बंधो, जहण्णवज्जो विसमो समो. वा॥२॥ प. २.गइपरिणामे णं भंते ! कइविहे पण्णते? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. फुसमाणगइपरिणामे य, २. अफुसमाणगइपरिणामे य, अहवा १.दीहगइपरिणामे य,२. हस्सगइ परिणामे य, प. ३.संठाणपरिणामेणं भंते ! कइविहे पण्णते? उ. गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा यथा १. परिमंडल संठाणपरिणामे, २. वट्टसंठाण परिणामे, ३. तंससंठाण परिणामे, ४. चउरंससंठाण परिणामे, ५. आययसंठाण परिणामे। १. परिमण्डलसंस्थानपरिणाम, २. वृत्तसंस्थानपरिणाम, ३. त्र्यंशसंस्थानपरिणाम, ४. चतुरश्रंसंस्थानपरिणाम, ५. आयतसंस्थानपरिणाम। १. ठाणं अ.१०.सु.७१३/२ २. (क) एगे बट्टे, एगे तंसे, एगे चउरंसे, एगे पिहले, एगे परिमंडले,-ठाणं अ.१, सु.३८ (ख) प. से किं तं संठाणणामे? उ. संठाणणामे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा १. परिमंडलसंठाणणामे जाव ५. आयतसंठाणणामे, सेत्तं संठाणणामे, -अणु. सु. २२४
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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