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________________ परिणाम अध्ययन : आमुख जीव एवं अजीव द्रव्यों की विभिन्न अवस्थाओं या पर्यायों में परिणमन को परिणाम कहते हैं। प्रस्तुत अध्ययन में जीव के गति, इन्द्रिय, कषाय, लेश्या, योग, उपयोग, ज्ञान, दर्शन, चारित्र और वेद इन दस परिणामों का तथा अजीव के बंधन, गति, संस्थान, भेद, वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु और शब्द सहित दस परिणामों का वर्णन है। प्रज्ञापना सूत्र में जीवादि तत्वों की विभिन्न द्वारों से व्याख्या करने की शैली है जिससे उस तत्व के सन्दर्भ में सहज रूप से सूक्ष्म एवं गूढ ज्ञान प्राप्त हो जाता है। परिणाम अध्ययन भी प्रज्ञापना सूत्र का ही एक अंश है। इसमें जीव एवं अजीव के विभिन्न पक्षों को उपर्युक्त दस-दस द्वारों से समझाया गया है। जीव के जिन दस परिणामों का कथन है वह प्रायः संसारी जीवों की अपेक्षा से है। इन परिणामों के भेदों का वर्णन करते हुए प्रस्तुत अध्ययन में इन्हें २४ दण्डकों में घटित किया गया है। मनुष्य का दण्डक ही एक ऐसा दण्डक है जिसमें केवली की अपेक्षा मनुष्य को अनिन्द्रिय, अकषायी, अलेश्यी, अयोगी और अवेदी भी कहा गया है। सिद्धों की अपेक्षा से वर्णन नहीं है। अजीव के बन्धन आदि दस परिणाम प्रायः पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा से है। इन परिणामों के भेदों का भी यहां वर्णन किया गया है किन्तु । इन्हें धर्म, अधर्म, आकाश एवं काल द्रव्यों में घटित करने का उपक्रम नहीं किया गया। पुद्गल को छोड़कर सभी अजीव द्रव्य वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श एवं शब्द से रहित हैं, अगुरुलघु परिणाम भी उनमें पाया जाता है। इस प्रकार पुद्गल से भिन्न धर्मादि द्रव्यों में भी वर्णादि कुछ द्वार घटित किए जा सकते हैं।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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