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________________ ( ८८ - अजहण्णमणुक्कोसठिईए वि एवं चेव, द्रव्यानुयोग-(१) अजघन्य-अनुत्कष्ट (मध्यम) स्थिति वाले पुद्गलों के पर्याय भी इसी प्रकार कहने चाहिए। विशेष-स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है। १९. जघन्यादिगुण वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्श वाले पुदगलों के पर्यायों का परिमाणप्र. भंते ! जघन्यगुण काले पुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "जघन्यगुण काले पुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं ?" णवर-ठिईए चउट्ठाणवडिए। -पण्ण. प. ५, सु. ५५६ १९. जहण्णाइगुणवण्ण-गंध-रस-फासयाणं पोग्गलाणं पज्जव पमाणंप. जहण्णगुणकालयाणं भंते! पोग्गलाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणतुणं भंते! एवं वुच्चइ "जहण्णगुणकालयाणं पोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा! जहण्णगुणकालए पोग्गले जहण्णगुणकालयस्स पोग्गलस्स(१) दव्वळुयाए तुल्ले, (२) पदेसट्टयाए छट्ठाणवडिए, (३) ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, (४) ठिईए चउट्ठाणवडिए, (५-८) कालवण्णपज्जवेहिं तुल्ले, अवसेसेहिं वण्ण-गंध-रस-अट्ठफासपज्जवेहि य छट्ठाणवडिए। से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ"जहण्णगुणकालयाणं पोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" एवं उक्कोसगुणकालए वि। अजहण्णमणुकोसगुणकालए वि एवं चेव, उ. गौतम ! एक जघन्यगुण काला पुद्गल, दूसरे जघन्यगुण काले पुद्गल से(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है, (३) अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है (४) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (५-८) कृष्णवर्ण के पर्यायों की अपेक्षा तुल्य है, शेष वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्शी के पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"जघन्यगुण काले पुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं।" णवरं-सट्ठाणे छट्ठाणवडिए। एवं जहा कालवण्णपज्जवाणं वत्तव्यया भणिया तहा सेसाण वि वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवाणं वत्तव्वया भाणियव्वा जाव अजहण्णमणुक्कोसलुक्खे सट्ठाण छट्ठाणवडिए। सेत्तं रूविअजीवपज्जवा। सेत्तं अजीव पज्जवा। -पण्ण.प.५,सु.५५७-५५८ इसी प्रकार उत्कृष्ट गुण काले पुद्गलों के पर्याय कहने चाहिए। अजघन्य अनुत्कृष्ट (मध्यम) गुण काले पुद्गलों के पर्याय भी इसी प्रकार कहने चाहिए। विशेष-स्वस्थान में षट्स्थानपतित है। जिस प्रकार कृष्णवर्ण के पर्याय कहे उसी प्रकार शेष वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के पर्याय भी कहने चाहिए यावत् अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) गुण रूक्षस्पर्श पर्याय स्वस्थान म षट्स्थानपतित है यहाँ तक कहना चाहिए। यह रूपी-अजीव-पर्यायों का कथन है। इस प्रकार यह अजीव पर्यायों का वर्णन भी पूर्ण हुआ।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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