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________________ ८२ अजहण्णमणुक्कोसगुणकक्खडे वि एवं चेव, णवरं-सट्ठाणे छट्ठाणवडिए। एवं मउय-गुरुय-लहुए विभाणियव्वे। प. जहण्णगुणसीयाणं भंते! परमाणुपोग्गलाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा!अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ "जहण्णगुणसीयाणं परमाणुपोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा! जहण्णगुणसीए परमाणुपोग्गले जहण्गुण सीयस्स परमाणुपोग्गलस्स(१) दवट्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसठ्ठयाए तुल्ले, (३) ओगाहणट्ठयाए तुल्ले, (४) ठिईए चउट्ठाणवडिए, (५-८) वण्ण-गंध-रसेहिं छठ्ठाणवडिए सीयफासपज्जेवहि य तुल्ले, उसिणफासो न भण्णइ, निद्धलुक्खफासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए। द्रव्यानुयोग-(१) अजघन्य अनुत्कृष्ट (मध्यम) गुण कर्कश अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के पर्याय भी इसी प्रकार कहने चाहिए। विशेष-स्वस्थान में षट्स्थानपतित है। इसी प्रकार मृदु, गुरु (भारी) और लघु (हल्के) स्पर्श वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के पर्याय भी कहने चाहिए। प्र. भंते ! जघन्यगुणशीत परमाणुपुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "जघन्यगुणशीत परमाणुपुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं?" उ. गौतम ! एक जघन्यगुणशीत परमाणुपुद्गल, दूसरे जघन्यगुणशीत परमाणुपुद्गल से(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है, (३) अवगाहना की अपेक्षा तुल्य है, (४) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (५-८) वर्ण, गन्ध और रसों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है, शीतस्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा तुल्य है। इसमें उष्णस्पर्श का कथन नहीं करना चाहिए। स्निग्ध और रूक्षस्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"जघन्यगुणशीत परमाणुपुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं।" से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ"जहण्णगुणसीयाणं परमाणुग्नेग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" एवं उक्कोसगुणसीए वि। . अजहण्णमणुक्कोसगुणसीए वि एवं चेव, णवर-सट्ठाणे छट्ठाणवडिए। प. जहण्णगुणसीयाणं भंते! दुपदेसियाणं खंधाणं केवइया । पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. सेकेणटेणं भंते! एवं वुच्चइ "जहण्णगुणसीयाणं दुपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा! जहण्णगुणसीए दुपदेसिए खंधे जहण्णगुण सीयस्स दुपदेसियस्स खंधस्स(१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसठ्ठयाए तुल्ले, (३) ओगाहणट्ठयाए-१. सिय हीणे, २. सिय तुल्ले, ३.सिय अब्भहिए। इसी प्रकार उत्कृष्ट गुणशीत (परमाणुपुद्गलों) के पर्याय कहने चाहिए। अजघन्य अनुत्कृष्ट (मध्यम) गुण शीत (परमाणुपुद्गलों) के पर्याय भी इसी प्रकार कहने चाहिए। विशेष-स्वस्थान में षट्स्थानपतित है। प्र. भंते ! जघन्यगुणशीत द्विप्रदेशिक स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "जघन्यगुणशीत द्विप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं ?" उ. गौतम ! एक जघन्यगुणशीत द्विप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्यगुणशीत द्विप्रदेशी स्कन्ध से(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है, (३) अवगाहना की अपेक्षा-१. कदाचित् हीन, २. कदाचित् तुल्य, और ३. कदाचित् अधिक है।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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