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________________ पर्याय अध्ययन ८१ (१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसठ्ठयाए छट्ठाणवडिए, (३) ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, (४) ठिईए चउट्ठाणवडिए, (५-८) कालवण्णपज्जवेहिं तुल्ले, अवसेसेहिं वण्णाइअट्ठफासेहि यछट्ठाणवडिए। से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ"जहण्णगुणकालयाणं अणंतपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" एवं उक्कोसगुणकालए वि। अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि एवं चेव, णवर-सट्ठाणे छट्ठाणवडिए। एवं नील-लोहिय-हालिद्द-सुकिल्ल-सुब्भिगंध-दुब्भिगंधतित्त-कडु-कसाय-अंबिल-महुररसपज्जवेहि य वत्तव्वया भाणियव्वा। णवर-परमाणुपोग्गलस्स-सुब्भिगंधस्स दुब्भिगंधो न भण्णइ, दुब्भिगंधस्स सुब्भिगंधो न भण्णइ, तित्तस्स अवसेसा न भण्णइ, एवं कडुयाईण वि, सेसंतं चेव। प. जहण्णगुणकक्खडाणं भंते! अणंतपदेसियाणं खंधाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. सेकेणद्वेणं भंते! एवं वुच्चइ "जहण्णगुणकक्खडाणं अणंतपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा! जहण्णगुणकक्खडे अणंतपदेसिए खंधे जहण्णगुणकक्खडस्स अणंतपदेसियस्स खंधस्स(१) दव्वठ्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसट्टयाएछट्ठाणवडिए, (३) ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, (४) ठिईएचउट्ठाणवडिए, (५-८) वण्ण-गंध-रसेहिं छट्ठाणवडिए, कक्खडफासपज्जवेहिं तुल्ले, अवसेसेहिं सत्तफासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए। से तेणद्वेणं गोयमा! एवं वुच्चइ"जहण्णगुणकक्खडाणं अणंतपदेसियाणं खंधार्ण अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" एवं उक्कोसगुणकक्खडे वि। (१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है, (३) अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (४) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (५-८) कृष्णवर्ण के पर्यायों की अपेक्षा तुल्य है, अवशिष्ट वर्ण आदि एवं आठ स्पर्शों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"जघन्यगुण काले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं।" इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के पर्याय कहने चाहिए। इसी प्रकार अजघन्य अनुत्कृष्ट (मध्यम) गुण काले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों का कथन करना चाहिए। विशेष-स्वस्थान में षट्स्थानपतित है। इसी प्रकार नील, रक्त, हारिद्र (पीत),शुक्ल, सुगन्ध, दुर्गन्ध, तिक्त (तीखा), कटु, कषाय, अम्ल (खट्टा), मधुर रस के पर्यायों का कथन करना चाहिए। विशेष-सुगन्ध वाले परमाणुपुद्गल में दुर्गन्ध नहीं कहें, दुर्गन्ध वाले परमाणुपुद्गल में सुगन्ध नहीं कहें। तिक्त (तीखे) रस वाले में शेष रसों का कथन नहीं करें। कटु आदि रसों के लिए इसी प्रकार जानना चाहिए। शेष कथन पूर्ववत् है। प्र. भंते ! जघन्यगुणकर्कश अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "जघन्यगुणकर्कश अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं?" उ. गौतम ! एक जघन्यगुणकर्कश अनन्तप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्यगुणकर्कश अनन्तप्रदेशी स्कन्ध से(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है, (३) अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (४) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (५-८) वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श की अपेक्षा षट्स्थानपतित है, कर्कश स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा तुल्य है। अवशिष्ट सात स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"जघन्यगुणकर्कश अनन्त प्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं।" इसी प्रकार उत्कृष्ट गुण कर्कश (अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के पर्याय जानने चाहिए।)
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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