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________________ पर्याय अध्ययन (३) ओगाहणट्ठयाए तुल्ले, (४) ठिईए तिट्ठाणवडिए। (५) वण्ण, (६) गंध, (७) रस, (८) फासपज्जवेहिं, (९) दोहिं णाणपज्जवेहिं, (१०) दोहिं अण्णाणपज्जवेहि, (११) दोहिं दंसणपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए। से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"जहण्णोगाहणगाणं पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" उक्कोसोगाहणए वि एवं चेव। णवरं-तिहिं णाणपज्जवेहिं, तिहिं अण्णाणपज्जवेहि, तिहिं दंसणपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए। जहा उक्कोसोगाहणए तहा अजहण्णमणुक्कोसोगाहणए वि। णवरं-ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए। ठिईए चउट्ठाणवडिए। प. जहण्णठिईयाणं भंते ! पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं१ केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणतुणं भंते ! एवं वुच्चइ "जहण्णठिईयाणं पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा ! जहण्णठिईए पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिए जहण्ण ठिईयस्स पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियस्स(१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसठ्ठयाए तुल्ले, (३) ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए (४) ठिईए तुल्ले (५) वण्ण, (६) गंध, (७) रस, (८) फासपज्जवेहिं, (९) दोहिं अण्णाणपज्जवेहि, (१०) दोहिं दंसण पज्जवेहिं छट्ठाणवडिए। से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"जहण्णठिईयाणं पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" उक्कोसठिईएविएवं चेव। ५७ ) (३) अवगाहना की अपेक्षा तुल्य है, (४) स्थिति की अपेक्षा त्रिस्थानपतित है, (५) वर्ण, (६) गन्ध, (७) रस , (८) स्पर्श के पर्यायों (९) दो ज्ञान पर्यायों (१०) दो अज्ञान पर्यायों, (११) दो दर्शन पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"जघन्य अवगाहना वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के अनन्त पर्याय हैं।" उत्कृष्ट अवगाहना वाले के पर्याय के लिए भी इसी प्रकार कहना चाहिए। विशेष-तीन ज्ञान तीन अज्ञान और तीन दर्शन पर्यों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। जिस प्रकार उत्कृष्ट अवगाहना वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के पर्याय कहे उसी प्रकार मध्यम अवगाहना वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के लिए भी कहना चाहिए। विशेष-अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा भी चतुःस्थानपतित है। प्र. भंते ! जघन्य स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के कितने पर्याय कहे गये हैं ? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गये हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "जघन्य स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के अनन्त पर्याय हैं ? उ. गौतम ! एक जघन्य स्थिति वाला पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक दूसरे जघन्य स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकं से(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा (भी) तुल्य है, (३) अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है। (४) स्थिति की अपेक्षा तुल्य है, (५) वर्ण, (६) गन्ध, (७) रस, (८) स्पर्श के पर्यायों, (९) दो अज्ञान पर्यायों, (१०) दो दर्शन पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"जघन्य स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के अनन्त पर्याय हैं।" उत्कृष्ट स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के पर्याय भी। इसी प्रकार कहने चाहिए। विशेष-इसमें दो ज्ञान, दो अज्ञान और दो दर्शन कहने चाहिए। णवरं-दो नाणा, दो अन्नाणा, दो दंसणा। १. जघन्य स्थिति वाले तिर्यंच पंचेन्द्रियों में दस स्थान हैं । इनमें नौवां ज्ञान स्थान नहीं है।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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