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________________ पर्याय अध्ययन णवरं-दोणाणा अब्महिया। अजहण्णमणुक्कोसठिइए जहा उक्कोसठिईए। - ५५ ) विशेष-इनमें दो ज्ञान अधिक रुहना चाहिए। जिस प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले द्वीन्द्रिय जीवों के पर्याय । कहे उसी प्रकार अजघन्य अनुत्कृष्ट (मध्यम) स्थिति वाले द्वीन्द्रिय जीवों के पर्याय भी कहने चाहिए। विशेष-स्थिति की अपेक्षा त्रिस्थानपतित है। प्र. भंते ! जघन्यगुण कृष्ण वर्ण वाले द्वीन्द्रिय जीवों के कितने पर्याय कहे गये हैं ? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्यगुण कृष्ण वर्ण वाले द्वीन्द्रियों के अनन्त पर्याय हैं ? णवरं-ठिईए तिट्ठाणवडिए। प. जहण्णगुणकालयाणं भंते ! बेइंदियाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ "जहण्णगुणकालयाणं बेइंदियाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा ! जहण्णगुणकालए बेइंदिए जहण्णगुणकालयस्स बेइंदियस्स(१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसठ्ठयाए तुल्ले, (३) ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए। (४) ठिईए तिट्ठाणवडिए। (५) कालवण्णपज्जवेहिं तुल्ले, अवसेसेहिं वण्ण, (६) गंध, (७) रस, (८) फासपज्जवेहिं, (९) दोहिं णाणपज्जवेहिं, (१०) दोहिं अण्णाणपज्जवेहिं, (११) अचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिए। से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"जहण्णगुणकालयाणं बेइंदियाणं अणता पज्जवा पण्णत्ता।" एवं उक्कोसगुणकालए वि। उ. गौतम ! एक जघन्यगुण काला द्वीन्द्रिय जीव, दूसरे जघन्य गुण काले द्वीन्द्रिय जीव से(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है, (३) अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (४) स्थिति की अपेक्षा त्रिस्थानपतित है, (५) कृष्णवर्ण पर्यायों की अपेक्षा तुल्य है, शेष वर्ण (६) गंध, (७) रस , (८) स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा (९) दो ज्ञान पर्यायों, (१०) दो अज्ञान पर्यायों एवं (११) अचक्षुदर्शन पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"जघन्य गुण काले वर्ण वाले द्वीन्द्रिय जीवों के अनन्त पर्याय अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि एवं चेव। णवरं-सट्ठाणे छट्ठाणवडिए। एवं पंच वण्णा, दो गंधा, पंच रसा, अट्ठ फासा भाणियव्वा। प. जहण्णाभिणिबोहियणाणीणं भंते ! बेइंदियाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणतुणं भंते ! एवं वुच्चइ "जहण्णाभिणिबोहियणाणीणं बेइंदियाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा ! जहण्णाभिणिबोहियणाणी बेइंदिए जहण्णा भिणिबोहियणाणीस्स बेइंदियस्स इसी प्रकार उत्कृष्ट गुण काले द्वीन्द्रिय जीवों के पर्याय कहने चाहिए। अजघन्य अनुत्कृष्ट (मध्यम) गुण काले द्वीन्द्रिय जीवों का कथन भी इसी प्रकार है। विशेष-स्वस्थान में षट्स्थानपतित है। इसी प्रकार पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और आठ स्पर्शों की पर्याय भी कहने चाहिए। प्र. भंते ! जघन्य आभिनिबोधिक ज्ञानी द्वीन्द्रिय जीवों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "जघन्य आभिनिबोधिक ज्ञानी द्वीन्द्रिय जीवों के अनन्त पर्याय हैं?" उ. गौतम ! एक जघन्य आभिनिबोधिक ज्ञानी द्वीन्द्रिय, दूसरे जघन्य आभिनिबोधिक ज्ञानी द्वीन्द्रिय से
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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