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________________ ( द्रव्यानुयोग-(१) इस कारण से गौतम! ऐसा कहा जाता है कि"मध्यम अवगाहना वाले नैरयिकों के अनन्त पर्याय हैं। ४८ ) से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"अजहण्णुक्कोसोगाहणगाणं नेरइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" प. जहण्णठिइयाणं भंते ! नेरइयाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ "जहण्णठिइयाणं नेरइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा ! जहण्णठिइए नेरइए जहण्णठिइयस्स नेरइयस्स प्र. भंते ! जघन्य स्थिति वाले नारकों के कितने पर्याय कहे गये १. दव्वट्ठयाए तुल्ले, २. पदेसट्टयाए तुल्ले, ३. ओगाहणठ्ठयाए चउट्ठाणवडिए। ४. ठिईए तुल्ले। ५. वण्ण, ६.गंध, ७.रस, '८. फासपज्जवेहि, ९. तिहिं णाणपज्जवेहि, १०. तिहिं अण्णाणपज्जवेहि, -११. तिहिं दंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिए। उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "जघन्य स्थिति वाले नैरयिकों के अनन्त पर्याय हैं ?" उ. गौतम ! एक जघन्य स्थिति वाला नारक दूसरे जघन्य स्थिति वाले नारक से १. द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, २. प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है, ३. अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, ४. स्थिति की अपेक्षा तुल्य है, ५. वर्ण, ६. गन्ध, ७. रस और ८. स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से तथा ९. तीन ज्ञान, १०. तीन अज्ञान एवं ११. तीन दर्शन पर्यायों की अपेक्षा षट् स्थानपतित (हीनाधिक) है। इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले नारक के विषय में भी कहना चाहिए। अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) स्थिति वाले नारक के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए। विशेष-स्वस्थान में चतुःस्थानपतित है। प्र. भंते ! जघन्य गुण काले नैरयिकों के कितने पर्याय कहे गए एवं उक्कोसट्ठिईए वि। अजहणुक्कोसटिईए विएवं चेव। उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गये हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "जघन्यगुण काले नैरयिकों के अनन्त पर्याय हैं ?" णवरं-सट्ठाणे चउट्ठाणवडिए। प. जहण्णगुणकालयाणं भंते ! नेरइयाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ "जहण्णगुणकालयाणं नेरइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा ! जहण्णगुणकालए नेरइए जहण्णगुणकालगस्स नेरइयस्स१. दव्वट्ठयाए तुल्ले, २. पदेसठ्ठयाए तुल्ले, ३. ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, ४. ठिईए चउट्ठाणवडिए, ५. कालवण्णपज्जवेहिं तुल्ले, अवसेसेहिं वण्ण-६.गंध, ७. रस, ८. फासपज्जवेहि, ९. तिहिं णाणपज्जवेहिं, १०. तिहिं अण्णाणपज्जवेहिं, ११. तिहिं दंसणपज्जवेहि यछट्ठाणवडिए। से तेणतुणं गोयमा ! एवं वुच्चइ उ. गौतम ! एक जघन्यगुण काला नैरयिक दूसरे जघन्य गुण काले नैरयिक से१. द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, २. प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है, ३. अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, ४. स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, ५. काले वर्ण के पर्यायों की अपेक्षा तुल्य है, किन्तु अवशिष्ट वर्ण, ६. गन्ध, ७. रस और ८ स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से, ९. तीन ज्ञान, १०. तीन अज्ञान और ११. तीन दर्शनों के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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