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________________ प्राचीन आचार्यों ने आगमों के गम्भीर अर्थ को सरलतापूर्वक समझाने के लिए आगमों का चार अनुयोगों में वर्गीकरण किया है१. चरणानुयोग-आचार सम्बन्धी आगम। २. धर्मकथानुयोग-उपदेशप्रद कथा एवं दृष्टान्त सम्बन्धी आगम। ३. गणितानुयोग-चन्द्र-सूर्य-अन्तरिक्ष विज्ञान तथा भू-ज्ञान के गणित विषयक आगम। ४. द्रव्यानुयोग-जीव-अजीव आदि तत्त्वों की व्याख्या करने वाले आगम। अनुयोग वर्गीकरण के लाभ ___ यद्यपि अनुयोग वर्गीकरण पद्धति आगमों के उत्तरकालीन चिन्तक आचार्यों की देन है, किन्तु यह आगमपाठी श्रुताभ्यासी मुमुक्षु के लिए बहुत उपयोगी है। आज के कम्प्यूटर युग में तो इस पद्धति की अत्यधिक उपयोगिता है। विशाल आगम साहित्य का अध्ययन कर पाना सामान्य व्यक्ति के लिए बहुत कठिन है। इसलिए जब जिस विषय का अनुशीलन करना हो, तब तद्विषयक आगम पाठ का अनुशीलन करके जिज्ञासा का समाधान करना-यह तभी सम्भव है, जब अनुयोग पद्धति से सम्पादित आगमों का शुद्ध संस्करण उपलब्ध हो। अनुयोग पद्धति से आगमों का स्वाध्याय करने पर अनेक जटिल विषय स्वयं समाहित हो जाते हैं, जैसे१. आगमों का किस प्रकार विस्तार हुआ है-यह स्पष्ट हो जाता है ? २. कौन-सा पाठ आगम संकलन काल के पश्चात् प्रविष्ट हुआ है ? ३. आगम पाठों में आगम लेखन से पूर्व तथा पश्चात् वाचना भेद के कारण तथा देश काल के व्यवधान के कारण लिपि काल में क्या अन्तर पड़ा है? ४. कौन-सा आगम पाठ स्व-मत का है, कौन-सा पर-मत की मान्यता वाला है तथा भ्रांतिवश पर-मत मान्यता वाला कौन-सा पाठ आगम में संकलित हो गया है? इस प्रकार अनेक प्रश्नों के समाधान इस शैली से प्राप्त हो जाते हैं, जिनका आधुनिक शोध छात्रों/प्राच्य विद्या के अनुसन्धाता विद्वानों के लिए बहुत महत्त्व है। अनुयोग कार्य का इतिहास लगभग आज से ४५ वर्ष पूर्व मेरे मन में अनुयोग वर्गीकरण पद्धति से आगमों का संकलन करने की भावना जगी थी। आगमों के प्रकाण्ड विद्वान् आचार्य श्री घासीलाल जी म., उपाध्याय कवि श्री अमरचन्द जी म., श्री दलसुखभाई मालवणिया ने उस समय मुझे मार्गदर्शन किया, प्रेरणा दी और आत्मीयभाव से सहयोग दिया। उनकी प्रेरणा व सहयोग का सम्बल पाकर मेरा संकल्प दृढ़ होता गया और मैं इस श्रुत-सेवा में जुट गया। आज के अनुयोग ग्रन्थ उसी बीज के मधुर फल हैं। सर्वप्रथम गणितानुयोग का कार्य स्वर्गीय गुरुदेव श्री फतेहचन्द जी म. सा. के सान्निध्य में हरमाड़ा में प्रारम्भ किया था। आज द्रव्यानुयोग का सम्पादन कार्य हरमाड़ा में ही सम्पन्न हो रहा है। ४५ वर्ष की दीर्घ कालावधि में चारों अनुयोगों के वर्गीकरण का कार्य सम्पन्न हो गया है, यह मेरे लिए सुखद आत्म-सन्तोष का विषय है। गणितानुयोग के सम्पादन पश्चात् धर्मकथानुयोग का सम्पादन प्रारम्भ किया। वह दो भागों में परिपूर्ण हुआ। तब तक गणितानुयोग का पूर्व संस्करण समाप्त हो चुका था तथा अनेक स्थानों से माँग आती रहती थी। इस कारण धर्मकथानुयोग के बाद पुनः गणितानुयोग का संशोधन प्रारम्भ किया, संशोधन क्या लगभग ५० प्रतिशत नया सम्पादन ही हो गया। उसका प्रकाशन पूर्ण होने के बाद चरणानुयोग का संकलन किया। ___ कहावत है-'श्रेयांसि बहुविघ्नानि' शुभ व उत्तम कार्य में अनेक विघ्न आते हैं। विघ्न-बाधाएँ हमारी दृढ़ता व धीरता, संकल्प शक्ति व कार्य के प्रति निष्ठा की परीक्षा है। अनेक बार शरीर अस्वस्थ हुआ, कठिन बीमारियाँ आईं। सहयोगी भी कभी मिले, कभी नहीं, किन्तु मैं अपने कार्य में जुटा रहा। सम्पादन में सेवाभावी विनय मुनि 'वागीश' भी मेरे साथ सहयोगी बने, वे आज भी शारीरिक सेवा के साथ-साथ मानसिक दृष्टि से भी मुझे परम साता पहुंचा रहे हैं और अनुयोग सम्पादन में भी सम्पूर्ण जागरूकता के साथ सहयोग कर रहे हैं। श्री मिश्रीमल जी म. 'मुमुक्षु' श्री चाँदमल जी म., पं. रत्न श्री रोशनलाल जी म. एवं श्री संजय मुनि जी ने भी सेवा-सुश्रूषा का पूरा ध्यान रखा, जिससे मैं इस कार्य में सफल रहा। द्रव्यानुयोग की रूपरेखा इसमें एक ओर मूल पाठ है व सामने शब्दानुलक्षी हिन्दी अनुवाद जाव व संक्षिप्त वाचना का पाठ भिन्न टाइप में दिया है। टिप्पण में समान पाठों के स्थल दिये हैं। अनेक अध्ययन हैं। द्रव्यानुयोग की सामग्री अति विशाल होने के कारण इसे तीन भागों में विभक्त किया है। प्रारम्भ में विषय-सूची व संकेत-सूची दी गई है, इसमें अनेक परिशिष्ट दिये हैं। (१२)
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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