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________________ पर्याय अध्ययन ३७ जीव पर्याय का वर्णन द्रव्य एवं प्रदेश को छोड़कर अवगाहना, स्थिति आदि के जघन्य, उत्कृष्ट एवं मध्यम रूपों के आधार पर भी हुआ है। इस आधार पर भी पर्यायों की अनन्तता ही सिद्ध होती है। जैसे जघन्य अवगाहना वाला एक नैरयिक द्रव्य, प्रदेश एवं अवगाहना की दृष्टि से दूसरे नैरयिक के तुल्य होता है किन्तु स्थिति, वर्ण, गन्ध, रसादि के आधार पर भिन्नता होने के कारण पर्याय की अनन्तता सिद्ध होती है। इसी प्रकार सभी दण्डकों में जघन्य मध्यम और उत्कृष्ट अवगाहना, स्थिति, वर्ण, गंध, रस आदि के आधार पर पर्याय का विचार हुआ है। अज्ञान द्वार से विचार वहां ही अभीष्ट है जहां अज्ञान उपलब्ध है। अजीव पर्याय दो प्रकार की है-रूपी अजीव पर्याय और अरूपी अजीव पर्याय। अरूपी अजीव पर्याय के दस भेद है 9. धर्मास्तिकाय, २. उसके देश और ३. प्रदेश ४. अधर्मास्तिकाय ५. उसके देश और ६. प्रदेश ७. आकाशास्तिकाय ८. उसके देश और ९. प्रदेश और १०. अद्धासमय । रूपी अजीव पर्याय के चार भेद हैं- १. स्कन्ध, २. देश, ३. प्रदेश और ४. परमाणु पुद्गल । रूपी अजीव पर्याय अनन्त हैं क्योंकि परमाणु पुद्गल अनन्त हैं, द्विप्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं यावत् दशप्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं, संख्यांतप्रदेशिक, असंख्यातप्रदेशिक और अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध भी अनन्त हैं। परमाणु पुद्गलों से लेकर अनन्तप्रदेशिक स्कन्धों की पर्यायों की अनन्तता पर विचार १. द्रव्य २. प्रदेश ३. अवगाहना ४. स्थिति ५. वर्ण ६. गन्ध ७. रस और ८. स्पर्श इन द्वारों से किया गया है। इसमें ज्ञान, अज्ञान और दर्शन द्वारों से विचार नहीं किया गया क्योंकि अजीव में ये तीनों नहीं पाए जाते हैं। एक परमाणु पुद्गल दूसरे परमाणु पुद्गल से द्रव्य एवं प्रदेश की अपेक्षा तुल्य होता है किन्तु अन्य द्वारों से उसमें भिन्नता रहती है। द्विप्रदेशिक स्कन्धों से लेकर दशप्रदेशिक स्कन्धों में यही विशेषता है। संख्यातप्रदेशिक, असंख्यातप्रदेशिक और अनन्तप्रदेशिक स्कन्धों में प्रत्येक में अपने वर्ण के स्कन्ध से द्रव्य की तुल्यता है, प्रदेशादि की नहीं। हीनता एवं अधिकता के संख्यात भाग, असंख्यात भाग, संख्यात गुण, असंख्यातगुण, अनन्त भाग, अनन्तगुण आदि भंग बनते हैं, वे यथायोग्य योजित होते हैं। प्रदेश, अवगाहना, स्थिति, वर्ण, गंध, रस एवं स्पर्श में से प्रत्येक द्वार को लेकर भी पुद्गल की अनन्त पर्यायों का विचार हुआ है, यथा- प्रदेश में एक प्रदेश में अवगाढ़, द्विप्रदेश में अवगाढ़ यावत् असंख्यात प्रदेश में अवगाढ़ पुद्गलों में इन्हीं द्वारों से अनन्त पर्याय का कथन हुआ है। इसी प्रकार एक समय की स्थिति वाले पुद्गलों की अनन्त पर्याय का वर्णन है यावत् असंख्यात समय की स्थिति वाले पुद्गलों की अनन्त पर्याय कही गयी हैं। एकगुण काले आदि वर्णों से लेकर अनन्तगुण रूक्ष स्पर्श पर्यन्त जो वर्णन हुआ है उसमें भी प्रत्येक की अनन्त पर्याय सिद्ध हुई हैं। जघन्य, उत्कृष्ट एवं मध्यम अवगाहना व स्थिति के आधार पर भी विभिन्न पुद्गलों में पर्याय की अनन्तता का प्रतिपादन हुआ है। द्विप्रदेशी स्कन्धों से लेकर अनन्त प्रदेशी स्कन्धों पर पर्याय के आनन्त्य का भी विचार हुआ है। यह सम्पूर्ण अध्ययन अनेकान्तदृष्टि को लिए हुए है। विविध दृष्टिकोणों से इस अध्ययन में जीव एवं पुद्गल की अनन्त पर्यायों का विवेचन हुआ है। धर्म, अधर्म आदि अरूपी द्रव्यों की अनन्त पर्यायों पर इस अध्ययन में विचार नहीं हुआ है। आधुनिक जैनदार्शनिकों के लिए आगम में विवेचित पर्याय की दृष्टि का यह अध्ययन स्रोत रूप में कार्य करेगा।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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