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द्रव्य अध्ययन
छण्हं दव्वाणं लक्खणंगइ-लक्षणो उधम्मो, अहम्मो ठाण-लक्षणो। भायणं सव्वदव्वाणं,नहं ओगाह-लक्खणं ।।१।।
वत्तणा लक्खणो कालो,जीवो उवओग-लक्खणो। नाणेणं दंसणेणं च, सुहेण यदुहेण य ।।२।।
६. छह द्रव्यों के लक्षण
गति हेतु धर्मास्तिकाय का लक्षण है। स्थिति में हेतु होना अधर्मास्तिकाय का लक्षण है। सभी द्रव्यों का आधार आकाश है और उसका लक्षण आश्रय देना है।।१।। वर्तना (परिवर्तन) काल का लक्षण है। उपयोग जीव का लक्षण है,जो ज्ञान, दर्शन, सुख-दुःख से पहचाना जाता है।।२॥ ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य और उपयोग ये जीव के लक्षण हैं।॥३॥ शब्द, अंधलार, उद्योत, प्रभा, छाया और आतप तथा वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श ये पुद्गल के लक्षण हैं।।४॥
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नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा। वीरियं उवओगो य, एयं जीवस्स लक्खणं ।।३।। सबंधयार उज्जोओ, पहा छाया तवे इ वा। वण्ण-रस-गंध-फासा,पुग्गलाणं तु लक्खणं ।।४।।
-उत्त.अ.२८ गा.९-१२ ७. सव्वदव्वाणं वण्णावण्णाई परूवणंप. सव्वदव्वाणं भंते ! कइवण्णा, कइगंधा, कइरसा,
कइफासा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! १. अत्थेगइया सव्वदव्वा पंचवण्णा जाव
अट्ठफासा पण्णत्ता, २. अत्थेगइया सव्वदव्वा पंचवण्णा जाव चउफासा पण्णत्ता, ३. अत्यंगइया सव्वदव्वा एगवण्णा, एगगंधा, एगरसा, दुफासा पण्णत्ता, ४. अत्थेगइया सव्वदव्वा अवण्णा, अगंधा, अरसा, अफासा पण्णत्ता। एवं सव्वपएसावि, सव्वपज्जवावि।
७. सर्व द्रव्यों के वर्ण-अवर्णादि का प्ररूपणप्र. भंते ! सभी द्रव्य कितने वर्ण, कितने गंध, कितने रस और
कितने स्पर्श वाले कहे गये हैं? उ. गौतम ! १. कितने ही सर्वद्रव्य पांच वर्ण यावत् आठ स्पर्श
वाले कहे गये हैं। २. कितने ही सर्वद्रव्य पांच वर्ण यावत् चार स्पर्श वाले कहे गये हैं। ३. कितने ही सर्वद्रव्य एक वर्ण, एक गन्ध, एक रस और दो स्पर्श वाले कहे गये हैं। ४. कितने ही सर्वद्रव्य वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से रहित कहे गए हैं।
इसी प्रकार सभी प्रदेशों और समस्त पर्यायों के विषय में भी (उपर्युक्त क्रम के अनुसार) कथन करना चाहिए। अतीत काल वर्ण रहित यावत् स्पर्श रहित कहा गया है। इसी प्रकार अनागतकाल और सर्वकाल भी वर्णादि रहित है।
तीयद्धा अवण्णा जाव अफासा पण्णत्ता, एवं अणागयद्धावि, एवं सव्वद्धावि।
-विया.स.१२, उ.५, सु.३३-३५ ८. छण्हं दव्वाणं अवट्टिई काल-परूवणंप. धम्मत्थिकाए णं भंते ! धम्मत्थिकाए त्ति कालओ केवचिरं
होइ? उ. गोयमा ! सव्वद्ध। एवं जाव अद्धासमए।
-पण्ण.प.१८, सु.१३९५
९. छहंदव्वाणं अणाइत्तं
प. से किं तं अणादिय-सिद्धतेणं? उ. अणादिय-सिद्धतेण
१. धम्मत्थिकाए, २. अधम्मत्थिकाए, ३. आगासत्थिकाए, ४. जीवत्थिकाए, ५. पोग्गलत्थिकाए, ६. अद्धासमए। सेतं अणादिय सिद्धतेणं।
-अणु.सु.२६९
८. षड्द्रव्यों के अवस्थिति काल का प्ररूपणप्र. भंते ! धर्मास्तिकाय धर्मास्तिकाय के रूप में कितने काल तक
रहता है? उ. गौतम ! वह सर्वकाल रहता है।
इसी प्रकार (अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और अद्धासमय (काल द्रव्य)
पर्यन्त भी अवस्थानकाल कहना चाहिए। ९. षट् द्रव्यों का अनादित्व
प्र. अनादिसिद्धान्तनिष्पन्ननाम का क्या क्रम है? उ. अनादिसिद्धान्त निष्पन्ननाम का क्रम इस प्रकार है
१. धर्मास्तिकाय, २. अधर्मास्तिकाय, ३. आकाशास्तिकाय, ४. जीवास्तिकाय, ५. पुद्गलास्तिकाय, ६. अद्धासमय। यह अनादि सिद्धान्त निष्पन्ननाम का क्रम हुआ।