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________________ सूत्र विषय पृष्ठांक विषय पृष्ठांक | २३. दृष्टि अध्ययन १. जीव-चौबीसदण्डकों और सिद्धों में दृष्टि के भेदों का प्ररूपण, ५७८ २. दृष्टि के अगुरुलुघत्व का प्ररूपण, ५७८ ३. दृष्टि निवृत्ति के भेद और चौबीसदण्डकों में प्ररूपण, ५७८-५७९ ४. दृष्टिकरण के भेद और चौबीसदण्डकों में प्ररूपण, ५७९ ५. दृष्टियों द्वारा बंध के प्रकार और चौबीसदण्डकों में प्ररूपण, ५७९ ६. सम्मूर्छिम गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों और मनुष्यों में दृष्टिभेदों का प्ररूपण, ५७९-५८० ७. वैमानिक देवों में दृष्टिभेदों का प्ररूपण, ५८० ८. सम्यग्दृष्टि आदि जीवों की कायस्थिति का प्ररूपण, ९. सम्यग्दृष्टि आदि जीवों के अन्तरकाल का प्ररूपण, ५८०-५८१ १०. सम्यग्दृष्टि आदि जीवों का अल्पबहुत्व, ६०० ६०१ ६०१ ५८० ५८१ ५९० ५९० ५९० ५९०-५९१ १४. व्यंजनावग्रह प्ररूपक दृष्टान्त, ५९५-५९७ १५. अवग्रहादि में वर्णादि के अभाव का प्ररूपण, ५९७ १६. अवग्रह आदि का काल प्ररूपण, ५९७ २. श्रुतज्ञान १७. श्रुतज्ञान के भेद, ५९७ १. अक्षरश्रुत, ५९७ २. अनक्षरश्रुत, ५९७ ३-४. संज्ञि-असंज्ञि श्रुत, ५९८-५९९ ५. सम्यक्श्रुत, ५९९ ६. मिथ्याश्रुत, ५९९-६०० ७-८. सादि-अनादि श्रुत, ९-१०. सपर्यवसित-अपर्यवसित श्रुत, -६०० ११-१२. गमिक-अगमिक श्रुत, १३-१४. अंगप्रविष्ट-अंगबाह्य श्रुत, १८. अंगप्रविष्ट श्रुत के भेद, ६०१ १९. अंगप्रविष्ट श्रुत का विस्तार से प्ररूपण, ६०१ (१) आचारांग सूत्र, ६०१-६०२ (क) आचारांग के अध्ययन, ६०२ (ख) आचारांग के उद्देशनकाल, ६०३ (ग) आचारांग के पद, ६०३ (घ) आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध का निक्षेप, ६०३ २०. (२) सूत्रकृतांग सूत्र, ६०३-६०४ (क) सूत्रकृतांग के अध्ययन, ६०४ २१. (३) स्थानांग सूत्र, (क) आचार, सूत्रकृत और स्थानांग के अध्ययन, ६०५ २२. (४) समवायांग सूत्र, ६०५-६०६ (क) समवायांग का उत्क्षेप, ६०६-६०७ (ख) समवायांग का उपसंहार, ६०७ २३. (५) व्याख्याप्रज्ञप्ति, ६०७-६०८ (क) व्याख्याप्रज्ञप्ति की अध्ययन विधि, ६०८-६०९ (ख) व्याख्याप्रज्ञप्ति के शतक और उद्देशकों की संख्या, (ग) व्याख्याप्रज्ञप्ति के पद, (घ) व्याख्याप्रज्ञप्ति के शतकों के उद्देशकों की संग्रहणी गाथाएँ, ६०९-६११ (च) व्याख्याप्रज्ञप्ति के उद्देशकों की संग्रहणी गाथाएँ, ६११-६१२ (छ) शतकों और उद्देशकों में उत्क्षेप पाठों का प्ररूपण, ६१२-६१३ २४. (६) ज्ञाताधर्मकथा सूत्र, ६१४-६१५ (क) ज्ञाताधर्मकथांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध का उपोद्घात, ६१५-६१८ (ख) प्रथम अध्ययन का निक्षेप, ६१८ (ग) दूसरे अध्ययन का उपोद्घात, २४. ज्ञान अध्ययन १. पाँच प्रकार के ज्ञान, २. ज्ञान निवृत्ति के भेद और चौबीसदण्डकों में प्ररूपण, ३. पाँच ज्ञानों का द्विविधत्व, ४. परोक्षज्ञान के भेद, १. मतिज्ञान ५. आभिनिबोधिक ज्ञान के पर्यायवाची नाम, ६. आभिनिबोधिक ज्ञान की उत्कृष्ट स्थिति, ७. आभिनिबोधिक ज्ञान के भेद, ८. अश्रुतनिश्रित मतिज्ञान के भेद, १. औत्पातिकी बुद्धि, . २. वैनयिकी बुद्धि, ३. कर्मजा बुद्धि, ४. पारिणामिकी बुद्धि, ९. औत्पत्तिकी आदि बुद्धियों में वर्णादि के अभाव का प्ररूपण, १०. श्रुतनिश्रित मतिज्ञान के भेद, ११. अवग्रह आदि के लक्षण, १. अवग्रह का प्ररूपण, २. ईहा की प्ररूपणा, ३. अवाय की प्ररूपणा, ४. धारणा की प्ररूपणा, १२. विषयग्रहण की अपेक्षा अवग्रहादि के भेद, १३. प्रकारान्तर से श्रुत-अश्रुत निश्रितों के भेद, ६०५ ५९१ ५९१ ५९१ ५९१ ५९१-५९२ ५९२ ५९२ ५९२-५९३ ६०९ ६०९ ५९३ ५९३ ५९३ ५९३ ५९४ ५९४ ५९४ ५९४-५९५ ५९५ ६१८ (८६)
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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