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८.आर्य- दिगम्बर मुनि। दिगम्बराचार्य शिवार्य अपने दिगम्बर गुरुओं का उल्लेख इसी नाम से करते हैं
"अज्ज जिणणंदिगणि, सव्वगत्तगणि अज्जमित्तणंदीण। अवगपिय पादमूले सम्मसुत्तं च अत्थं च।। पुव्यायरिय णिवद्धा उपजीविता इमा ससत्तीए।
आराधण सिवज्जेण पाणिदल भोजिणा रइदा।" यह सब आर्य (साधु) पाणिपात्रभोजी दिगम्बर थे।
९.ऋषि- दिगम्बर साधु का एक भेद है (यह शब्द विशेषतया ऋद्धिधारी साधु के लिए व्यवहत होता है) श्री कुन्दकुन्दाचार्य इसका स्वरूप इस प्रकार निर्दिष्ट करते हैं --
'णय, राय, दोस, मोहो, कोहो, लोहो, य जस्स आयत्ता।
पंच महव्वयधारा आयदणं महरिसी भणियं ।।६।
अर्थात- मद, राग, दोष, पोह, क्रोध, लोभ, माया आदि से रहित जो पंचमहाव्रतधारी हैं, वह पहाऋषि हैं।
१०.गणी-मुनियों के गण में रहने के कारण दिगम्बर मुनि इस नाम से प्रसिद्ध होते हैं। 'मूलाचार मे इसका उल्लेख निम्न प्रकार हुआ है
"विस्समिदो तदिवसं मोमंसिता णिवेदयदि गणिणो।"
११.गुरु- शिष्यगण-पुनि श्रावकादि के लिये धर्मगुरु होने के कारण दिगम्बर मुनि इस नाम से भी अभिहित है। उल्लेख यू पिलता है
"एव आपुच्छिता सगवर गुरुणा विसज्जिओ संतो।" १२.जिनलिंगी- "जनेन्द्र भगवान् द्वारा उपदिष्ट नग्न वेष का पालन करने के कारण दिगम्बर मुनि इस नाप से भी प्रसिद्ध हैं।
१३.तपस्वी-विशेषतर तप में लीन होने के कारण दिगम्बर मनि तपस्वी कहलाते हैं। 'रत्नकरण्ड श्रावकाचार' में इसकी व्याख्या निम्न प्रकार की गई है
"विषयाशाबशातीतो निरारम्भोऽपरिग्रहः।।
ज्ञान-ध्यान-तपोरक्तस्तस्वी स प्रशस्यते।।१०।। १४.दिगम्बर- दिशायें उनके वस्त्र हैं इसलिये जैन मुनि दिगम्बर हैं। मुनि कनकामर अपने को जैन मुनि हुआ दिगम्बर शब्द से ही प्रकट करते हैं
१. जैहि, , पा. १२, पृ. ३६० । २. अष्ट., पृ. ११४॥ ३.मूला.,पृ. ७५ | ४. मूला, पृ.६७। ५.वृजेश.. पृ. ४॥ ६.र.पा., पृ.८।
दिगम्बरप औ दिगम्बर मुनि