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नहीं है जिस पर यह टिक सके। जो इसका विरोध करता है वह स्वयं अपने भावों को गन्दगी प्रकट करता है। किन्तु यदि वह इन लोगों के निवासस्थान को गौर से देखे तो उसे अपना विरोध छोड़ देना होगा। वह देखेगा कि सैकड़ों स्त्री-पुरुषों माता-पिता और बच्चों ने कैसी पवित्रता प्राप्त कर ली है।"
अतएव पाश्चात्य विद्वानों की अनुभवपूर्ण गवेषणा से दिगम्बरत्व का महत्व स्पष्ट है। दिगम्बरत्व पनुष्य की आदर्श स्थिति है और वह धर्म-पार्ग से उपादेय है, यह पहले भी लिखा जा चुका है। स्वास्थ्य और सदाचार के पोषक नियम का वैज्ञानिक धर्म में आदर होना स्वाभाविक है। जैन धर्म एक विज्ञान है और वह दिगम्बरत्व के सिद्धान्त का प्रचारक अनादि काल से रहा है। उसके साधु इस प्राकृत वेष में शीलधर्म के उत्कट पालक और प्रचारक तथा इन्द्रियजयी योगी रहे हैं, जिनके सम्मुख सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य और सिकन्दर महान जैसे शासक नतमस्तक हुये थे और जिन्होंने सदा ही लोक का कल्याण किया ऐसे ही दिगम्बर मुनियों के संसर्ग में आये हुये अथवा मुनिधर्म से परिचित आधुनिक विद्वान भी आज इन तपोधन दिगम्बर मुनियों के चारित्र से अत्यन्त प्रभावित हुये हैं। वे उन्हें राष्ट्र को बहुमूल्य वस्तु समझते हैं। देखिये साहित्याचार्य श्री कपिल जी एम.५. जज उनके विषय में लिखते हैं कि "मैं जैन नहीं हूँ पर मुझे जैन साधुओं और गृहस्थों से मिलने का बहुत अवसर मिला है। जैन साधुओं के विषय में मैं, बिना किसी संकोच के कह सकता हूँ कि उनमें शायद ही कोई ऐसा साधु हो जो अपने प्राचीन पवित्र आदर्श से गिरा हो। मैने तो जितने साधु देखे हैं उनसे मिलने पर चित्त में यही प्रभाव पड़ा कि वे धर्म, त्याग, अहिंसा तथा सदुपदेश की मूर्ति हैं। उनसे मिलकर बड़ी प्रसन्नता होती है।" बंगाली विद्वान श्री बरदाकान्त पुखोपाध्याय एम.ए. इस विषय में कहते हैं - ____ “चौदह आभ्यान्तरिक और दस बाहय परिग्रह परित्याग करने से निग्रंथ होते हैं। जब वे अपनी नग्नावस्था को विस्मृत हो जाते हैं तब ही भवसिन्धु से पार हो सकते हैं। (उनको) नग्नावस्था और नग्नमूर्तिपूजा उनका प्राचीनत्व सप्रमाण सिद्ध करती है, क्योंकि मनुष्य आदि अवस्था में नग्न थे।"
महाराष्ट्रीयन विद्वान श्री वासुदेव गोविन्द आपटे बी.ए. ने एक व्याख्यान में कहा था कि “ जैन शास्त्रों में जो यतिधर्म कहा गया है वह अत्यन्त उत्कृष्ट है, इसमें कुछ मी शंका नहीं है। प्रो. डा. शेषगिरि राव, एम.ए. पी-एच.डी. बताते हैं कि -
१. जैमि, वर्ष ३२, पृष्ट ७१२। ४. जै.म. पृ.५६ २. दिमु..पृ. २३।
५. SSU. PT. II P.आ ३. जैम.. पृ. १५१। दिगम्बरत्य और दिगम्बर मुग्ने
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