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श्री जिनचन्द्र - श्री जिनचन्द्र मुनि को यह शिलालेख व्याकरण में पूज्यपाद, तर्क में भट्टाकलंक और साहित्य में भारवि बतलाता है।'
चालुक्य नरेश पूजित श्री वासवचन्द्र - श्री वासवचन्द्र मुनि ने चालुक्य नरेश के कटक में "बाल सरस्वती की उपाधि प्राप्त की थी, यह भी इस शिलालेख से प्रकट है। स्याद्वाद और तर्कशास्त्र में यह प्रवीण थे।'
सिंहल नरेश द्वारा सम्मानित यशः कीर्तिमुनि - श्री यशःकोर्तिमुनि को उक्त शिलालेख सार्थक नाम बताता है। वे विशाल कीर्ति को लिये हुये स्याद्वाद सूर्य ही थे। बौद्धावादियों को उन्होंने परास्त किया था तथा सिंहल नरेश ने उनके पूज्यपादों का पूजन किया था।'
श्री कल्याणकीर्ति - श्री कल्याणकीर्ति पुनि को उक्त शिलालेख जीवों के लिये कल्याणकारक प्रकट करता है। वह शाकनी आदि बाधाओं को दूर करने में प्रवीण थे।
श्री त्रिमष्टि मनीन्द्र बड़े सैद्धान्तिक बताये गये हैं। वे तीन मही अत्र का ही आहार करते थे। सारांश यह कि उक्त शिलालेख दिगम्बर मुनियों की गौरव गाथा को जानने के लिये एक अच्छा साधन है।'
वादीन्द्र अभयदेव - शक सं. १३२० (नं. १०५) के शिलालेख में भी अनेक दिगम्बराचार्यों की कीर्तिगाथा का बखान है। वादीन्द्र अभयदेवसूरि ने बौद्धादि परवादियों को प्रतिभाही- ना दिन - गही बाजाचार्ग चारुकीर्ति के विषय में कही गई है। . होयसाल वंश के राजगुरु दिगम्बर मुनि- शक सं. १२०५ (नं. १२९) में होयसाल वंश के राजगुरु महामण्डलाचार्य माघनन्दि का उल्लेख है, जिनके शिष्य बेलगोल केजौहरी थे।
१. जैनेन्द्र पूज्य (पादः) सकलसमयतक्के च मट्टाकलंकः । साहित्ये पारविस्स्यात्कवि गमक-महावाद-वाग्मित्व-रून्द्रः गौते पाये च नृत्ये दिशि विदिश च संवर्ति सत्कीर्ति मूर्तिः। स्थेयाश्कीयोगिवृन्दार्चितपद जिनचन्द्रो वितन्द्रोमुनीन्द्रः।। - thid. p. 253. २. जैशिसं., पृ.११९-"चालुक्य-कटक-मध्ये बाल सरस्वतिरिति प्रसिद्धि प्राप्तः।' ३. "श्रीमान्यशःकीर्ति-विशालकीर्ति स्याद्वाद ताज-विवोधनावकः | बौद्धादि-वादि-द्विप-कुम्भ भेदी श्री सिंहलाधीश कृतार_ पाद्य ।। २६।।" ४. कल्याणकीर्ति नामाभूतभव्य कल्याण कारकः। शाकिन्ययादि ग्रहाणांच निर्द्धाटनदुर्द्धरः।
-जैशिसं., पृ. १२१ ५.“मुष्टि-त्रय-प्रपिताशन-तुष्टः शिष्ट प्रियस्त्रिमुष्टिमुनीन्द्रः।" ६. जैशिसं., पृ. १९८-२०७ ७.Ibid. p. 253/
दिगम्बरत्व और दिगम्म पुनि
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