________________
दि० जैन व्रतोद्यापन संग्रह ।
अथ जयमाला ।
जो मुनि तारणतरण समच्छहु, भवसायर वरनाव समं ! परभव जण सुहयं पुण समच्छहु, आयरियमत्ति परमं ॥१॥ जो मुणिवर महवय पालन्त, जो मुणिवर कम्मइ काटन्त । जो मुणिवर चारित धरन्त, जो मुणिवर तप बारह करन्त || २ || जो मृणिवर गुति तय रक्षो, जो मुणिवर शिव सायर दक्षो । जो मुणिवर दह धम्म पयासे, जो मणिवर निखि-लागम भासे || ३ || जो मुणिवर जीवदया पाले, जो मुणिवर मिथ्यामद टाले । जो मुणिवर परोसहा बावीस, जो मुणिवर तप बारह इस |४| जो मुणिवर कम्मट्ठइ खण्डे, जो मुणिवर शुभ ध्यान मण्डे । जो मुणिवरं रयणत्तय जुत्ता, जो मुणिवर तिय सल्लविमुचा ॥५॥
घत्ता ।
जे बहुगुणपूरा कम्मु विचूरा
सिरि
भूषण
[ १३५
शिवपद सूरा भवभय हरणम् ।
कहिया तिहुयण महिया,
बंभणाण मह सुहकरणम्
ॐ ह्रीं आचार्य भक्तये पूर्णांचं० ॥
"