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[ २ द्वितीयो ऽक्सरः]
[अभयदानादिफलम् ] 58) दानशीलार्चनावृद्धथै तपोधर्मस्य भावनाः। ____अगारिणां यतः साध्ये किंचित्कस्यापि साधनम् ॥ १ 59) प्रसिद्धम्
यस्मादभ्युदयः पुंसां निःश्रेयसफलाश्रयः ।
वदन्ति विदिताम्नायास्तं धर्म धर्मसूरयः॥१*१ 60) दानमाद्यमभयं भयमुक्तैर्व्याहृतं तदनु चाहँतिनाम ।
ज्ञानसंज्ञमथ भेषजरूपं तच्चतुर्थमिति मुक्तिनिमित्तम् ॥ २
गृहस्थों के लिये दान, शील और जिनपूजा इनकी वृद्धि के लिये तपोधर्म की भावना निर्दिष्ट की गई है । चूंकि साध्यप्राप्ति के लिये कोई किसीका तो कोई किसीका साधन रहता है ॥१॥
प्रसिद्ध भी है --
जिससे पुरुषों को मोक्षरूप फल के आधारभूत अभ्युदय की प्राप्ति होती है उसे जैनागम के ज्ञाता धर्माचार्य धर्म कहते हैं ॥ ११ ॥
सब प्रकार के भय से रहित हुए गणधरादिकों ने पहला अभयदान, तदनंतर दूसरा आहारदान, तीसरा ज्ञान नामका दान और चौथा औषधदान ये दान के चार भेद निर्दिष्ट किये हैं । वह दान मुक्ति का कारण है ॥ २॥
१) 1 गृहस्थानाम् . 2 नित्यकरणीये 3 मोक्ष (?) । १*१) 1 धर्मात . 2 मोक्ष । २) 1 भयरहितैर्मुनिभिः. 2 कथितम् . 3 तदनन्तरम्. 4 अन्नदानम् ।