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– पुण्यपापफलवर्णनम् –
13 ) यथाङ्गमध्यक्षसुखे हि धर्मस्तथा परोक्षे ऽपि च मोक्षसौख्ये । भोगोपभोगादिसुखाय धर्मो मित्रादियत्नोऽपि निमित्तमात्रम् ॥ १३ 14 ) ये वाञ्छन्ति ततो ऽकलङ्कपदवीं ये दशं मानुषं सौख्यं विश्वजनैकविस्मयकरं कल्याणमालाधरम् । धर्मस्तैरुचितो विधातुमनिशं तस्माद्विनैतन्न यंत् छायाच्छन्नदिगन्तरस्तरुवरो दृष्टो न बीजाद्विना 15 ) धर्माज्जन्म कुले कलङ्कविकले कल्यं वपुर्यौवनं सौभाग्यं चिरजीवितव्यरुचिरं ' रामा रतिर्वा परा । सामर्थ्य शरणार्थिरक्षणपरं स्थानं प्रधानं सुखं स्वर्निःश्रेयसंसंभवं वरमपि प्राप्येत किं नो नृभिः ।। १५
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राजा व स्त्री की अनुकूलतायुक्त लोकपूज्य धन्य अवस्था को प्राप्त होते हैं । तथा पुण्य के आवासविशाल पुण्य के धारक - दूसरे कितने ही इन्द्रपुर (स्वर्ग) को प्राप्त होते हैं ॥ १२ ॥
धर्म जैसे प्रत्यक्ष सुख का कारण है वैसे ही वह परोक्ष स्वरूप मोक्षसुख का भी कारण है । भोगोपभोगादिसुख के लिये धर्म ही कारण है । इस सुख के लिये मित्रादिकों का यत्न भी निमित्तमात्र है || १३॥
जो भव्य जीव अकलंक पदवी को - ज्ञानावरणादि कर्म-कलंक से रहित मोक्षपद कोचाहते हैं, जो देवों संबंधी सुख को चाहते हैं, जो मनुष्यगति के सुख को चाहते हैं तथा जो संपूर्ण जन को आश्चर्य उत्पन्न करनेवाले व जन्मादि पाँच कल्याणरूपी माला को धारण करनेवाले सुख को - तीर्थंकर विभूति को - चाहते हैं उन्हें निरन्तर धर्म का आचरण करना योग्य है। कारण यह कि धर्म के बिना संसारभय दूर नहीं होगा । ठीक है, अपनी छाया से दिशाओं के मध्यभाग को व्याप्त करनेवाला उत्तम वृक्ष कभी बीज के बिना नहीं देखा गया है। तात्पर्य, जैसे बीज के बिना वृक्ष संभव नहीं है वैसेही धर्म के बिना सुख भी संभव नहीं है | १४ ||
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पूर्वाति धर्म से निर्दोष कुलमें जन्म होता है, शरीर सदा नीरोग तथा तरुण रहता है, दीर्घ आयु से रमणीय सौभाग्य अर्थात् सर्वजनप्रियता प्राप्त होती है, दूसरी रति के समान सुन्दर स्त्री प्राप्त होती है, शरण में आये हुये लोगों के रक्षण में तत्पर ऐसा सामर्थ्य प्राप्त होता है, उत्कृष्ट स्थानकी प्राप्ति होती है, तथा स्वर्ग में और मोक्ष में उत्पन्न हुये उत्तम सुख की प्राप्ति होती है । ठीक है, धर्म द्वारा मनुष्य क्या नहीं प्राप्त करते हैं ? अर्थात् धर्माचरणं से जीवों को सब ही उत्तम वस्तुओं की प्राप्ति होती है ।। १५ ।।
सुखम् .
१३) 1P 'धर्मात् । 6 यतः कारणात्. 7 D
( ४ ) 1 देवत्वम्. 2 कथंभूतं सौख्यम्. 3 कर्तुं योग्य: 4 धर्मात् 5 पूर्वोक्तं बीजं विना । १५ ) 1 नीरोगम्. 2 मनोज्ञम्. 3 इव. 4 स्वर्गमोक्ष ।