________________
[ १. प्रथमो ऽवसरः ] [ पुण्यपापफलवर्णनम् ]
1 ) लक्ष्मीं निरस्तनिखिलापदमाप्नुवन्तो लोकप्रकाशरवयः प्रभवन्ति भव्याः । यत्कीर्तिकीर्तनपरा जिनवर्धमानं तं नौमि कोविदनुतं सुधिया सुधर्मम् ॥ १ 2 ) अन्योन्यदूरसुविरुद्धमतैः समग्रैमूकत्वराक्षसभयादिव वादिसंघैः । या स्तूयते कृतसमानमतैः सदैव सा क्षालयत्विह रजांसि सरस्वती वः ।। २
( हिन्दी अनुवाद )
जिसके अनन्त ज्ञान- दर्शनादि गुणों का यशोगान करने में तत्पर रहनेवाले भव्यभविष्य में रत्नत्रय स्वरूप से परिणत होनेवाले - संपूर्ण आपदाओं को नष्ट करनेवाली लक्ष्मी को (अनन्तज्ञानादि चतुष्टयरूप अन्तरंगलक्ष्मी तथा समवसरणादि बाह्यलक्ष्मी को ) प्राप्त करते हुये लोकप्रकाशक सूर्य अर्थात् सर्वज्ञ होते हैं । विद्वज्जनों के द्वारा - गणधरादिकों के द्वारा - स्तुतियोग्य उन वर्धमान जिन की तथा सुधर्मकी - उत्तम जिनधर्म की - शुभबुद्धि से मैं स्तुति करता हूँ ॥ १ ॥ गूंगापनरूपी राक्षसके भय से मानो एक दूसरेसे दूर तथा अत्यन्त विरुद्ध मत को प्रतिपादन करनेवाले समस्त वादीसमूह जिसकी समानमत होकर अर्थात् एकमत से सदा प्रशंसा करते हैं ऐसी वह मान्य सरस्वती - जिनवाणी - आपके ज्ञानावरणादि कर्मोरूप धूलिः को धो दें ॥ २ ॥
१) 1P नमः सिद्धेभ्यः, D श्रीगणेशायनमः.