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- धर्मरत्नाकरः -
विषय
श्लोकाङक
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पंचमगुणस्थानवर्ती गृहस्थों के गुण ग्यारह प्रतिमाधारकों के भेद चतुर्विध भिक्षा पूजा और मुनिसेवा के बिना भोजन करना पाप है गृहस्थों का कर्तव्य कर्मबन्ध का कारण रत्नत्रय की महत्ता समक्त्व और चारित्र की महती सब अतिचारों से मुक्त जीव का आनन्द ग्रन्थ का स्वरूप विचारी गृहस्थों की प्रशंसा धर्म की प्रशंसा ग्रंथकार की प्रशंसा आशीर्वाद
२३*१ २३२-२४ २५-२६ २७-२८, ३१-३४ २९-३० ३५ ३६-३९ ४०-४०*१ ४१ - ४२