SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 459
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३९३ -१९. २५] - सल्लेखनावर्णनम् - 1559 ) लब्ध्वानुज्ञां विदितसमयो यो गुरूणां गुरूणां देशं कालं विजितकरणो याति योग्यं विभाव्य । पद्भ्यां नन्तुं जिनपतिवरानप्रतीकारचेष्ट श्चर्याबाधासहनमुदितं तस्य नैःसंग्यभाजः ॥ २३ 1560 ) श्मशाने ऽरण्ये वा विहितवसतेरासनशतैः पिशाचव्यालादिध्वनिकलकलैरप्यचलतः । गतक्षोभं व्याधाधुपजनितदुःखं च सहतो. निषद्याबाधाया विजय उदितो दान्तमनसः ॥ २४ 1561 ) ध्यानाध्ववाहसतताध्ययनोपवास मौतिकी श्रमवशेन गतस्य निद्राम् । भूमौ विकीर्णशतकण्टकशर्करायां शय्यापरीषहजयः स्थितविग्रहस्य ॥२५ जो ज्ञानादि गुणों में महानता को प्राप्त हैं ऐसे आचार्यों की अनुमति प्राप्त कर के स्वमत-परमत का ज्ञाता जो जितेन्द्रिय मुनिराज योग्य देशकाल का विचार कर जिनेश्वरों की वन्दना करने के लिये पावों से जाता है उस समय कण्टकादिकी बाधा के होने पर भी जो उसका प्रतीकार नहीं करता है ऐसे निर्ग्रन्य-नि:स्पृह-साधु को चर्यापरीषह का विजेता निर्दिष्ट किया गया है ॥ २३ ॥ जो सैंकडों आसनों के साथ -- गोदोहन व वीरासन आदि विविध प्रकार के आसनों को स्वीकार कर - श्मशान में या गहन वन में स्थित हो कर पिशाच आदि व्यन्तर देवों और व्याल - सर्प या हाथी- आदि पशुओं के भयानक शब्दों व कलकल ध्वनि को सुनता हआ भी गहीत आसन से विचलित नहीं होता है तथा क्षोभ से रहित हो कर भीलों आदि के आश्रय से उत्पन्न दुःख को सहता है, ऐसे मनस्वी साधु के निषद्यापरीषह का जय कहा गया है ।। २४॥ . जो साधु आत्मध्यान, मार्गगमन, अध्ययन और उपवासों से थककर सैंकडो तीक्ष्ण काँटे और कंकडों से व्याप्त पृथिवी के ऊपर मुहूर्तपर्यन्त निद्रा को प्राप्त होता है ऐसे निश्चल शरीरवाले मुनि के शय्यापरीषह का जय कहा गया है ॥२५॥ २३) 1 चरणाभ्यां द्वाभ्याम्. 2 P°गन्तुम्. 3 गाडी अश्वादिरहितः. 4 निःसंगस्य । २४) 1 कृतस्थानस्य. 2 मनेः. 3 निजितचित्तस्य । २५) 1 मागें चलनात्. 2 प्राप्तस्य. 3 P°शित, तीक्ष्ण ।
SR No.090136
Book TitleDharmaratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaysen, A N Upadhye
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1974
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy