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________________ - १२. १५*४] 982) अन्यच्च - - अहिंसासत्य विचारः क्रियान्यत्र क्रमेण स्यात् कियत्स्वेवं च वस्तुषु । जगत्त्रयादपि स्फारा चित्ते तु क्षणतः क्रिया ॥ १५*२ 983) तदुक्तम् पातालमाविशसि यासि नभो विलङ्घ्य 2 दिङ्मण्डलं भ्रमसि मानस चापलेन । भ्रान्त्यापि जातु विमलं तदिहात्मनीनं ' न ब्रह्म संस्पृशसि वीतजरादिदोषम् ॥ १५*३ 984 ) स्थावरेष्वपि न कामवृत्तयः' किंतु कार्यवशतो महाधियः । २५१ वृत्तिमादधति केsपि सत्तमाः सर्वतो ऽपि विरति वितन्वते ।। १५*४ क्रिया का निश्चित ही शुभ अथवा अशुभ कुछ न कुछ फल होता है । क्यों कि देहधारी - संसारी - प्राणियों की कोई भी क्रिया निष्फल नहीं होती है । अमर्याद गुणों से सुशोभित शुद्ध व ब्रह्मस्वरूप गम्भीर मूर्ति के धारक उस परमात्मा की जय हो जिसकी सेवा - हितोपदे - M शादि रूप क्रिया - निष्फल - पाप अथवा पुण्य के बन्धरूप फल से रहित होती है ॥ १५१ ॥ दूसरे इतर कितनी ही वस्तुओं में जो क्रिया होती है वह क्रमशः होती है । परन्तु मन में जो क्रिया होती है वह तीनों लोकों से भी विशाल व एक ही क्षण में होती है । अर्थात पदार्थ में मनका चिन्तन इतना व्यापक होता है कि उसमें तीनों लोक समा सकते हैं ।। १५* २ ॥ कहा भी है- मन के विषय में ऐसा कहा हैं। हे मन ! पाताल में प्रवेश करता है, आकाश को लाँघकर जाता है, तथा तू चपलता से सब दिशाओं के घेरे में भी भ्रमण करता है । परन्तु वृद्धावस्थादि दोषोंसे रहित व आत्मा के हितकारी निर्मल ब्रह्म को - परमात्मस्वरूप को तू भूल से भी कभी स्पर्श नहीं करता है ॥ १५*३ ॥ - महाबुद्धिमान् मनुष्य स्थावर प्राणियों के विषय में भी यथेच्छ प्रवृत्ति नहीं करते हैं किन्तु कार्य की अपेक्षा से ही वे उक्त स्थावरों के वध में प्रवृत्त होते हैं। कितने ही सर्व श्रेष्ठ महापुरुष उनमें पूर्णतया विरत होते हैं अर्थात् वे स्थावर घात और त्रसघात दोनों से ही विरत हो कर अहिंसा महाव्रतका पालन करते हैं । १५*४ ॥ १५*२) 1 PD क्रियाश्चैव २ P° क्रिया. १५ * ३ ) 1 कदाचित्. 2 आत्महितम्. 3D ब्रह्म । १५*४) 1 स्वेच्छाचारिण: 2D सत्पुरुषाः 3 धारयन्ति 4 सत्पुरुषाः दशमएकादश मप्रति [ मा ] धारी, D प्रतिमा. 5 विस्तारयन्ति ।
SR No.090136
Book TitleDharmaratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaysen, A N Upadhye
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1974
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size38 MB
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