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- साधुपूजाफलम्"250) युक्तायुक्तविचारचञ्चुरधियः पञ्चास्तिकायादिषु
मिश्राचित्तसचित्तवस्तुविषयां कुर्युः परिस्थापनाम् । पाणित्राणपरायणाः सुकृतिनीमायान्ति ते मन्दिरे
काम कामदुघा विशन्ति सदने गावो हि पुण्यात्मनाम् ॥६८ 251) यो' मञ्जीरकमब्लॅसिज्जितरवैः श्रीराजहंसस्वनं
न्यक्कुर्वाणंमलं विलोक्य ललनालोकं लसन्मेखलम् । पन्थानं मथितोरुमन्मथशरः पश्यन् शनैर्गच्छति
धन्यस्यैष गृहाङ्गणं मुनिगणः पादैः समाक्रामति ॥६९ 252) त्रिभुवनमिदं व्याप्तं चित्रैश्चराचरंजन्तुभिः
स्वभरणपरैः पीडां कर्तुं परस्य सदोद्यतैः। कथमपि तनुत्यागे ऽप्यन्यं हिनस्ति न यः सदा
कथमिव मुनिर्मान्यो न स्यात्स देव इवापरः ॥ ७० चातुर्य से परिपूर्ण ऐसे उत्तम एवं मधुर वचन को परिमित मात्रा में बोलता है, जो वस्तु के निर्णय करने में समर्थ होता है, ऐसे मुनिसमूह को भाग्यवान पुरुष ही अपने गृहके आँगनमें प्राप्त किया करते हैं । सो ठीक भी है, अपने घरके आँगन में उत्तम कल्पवृक्ष पुण्यात्माओं को ही प्राप्त होता है ॥६७ ॥
___जिनकी बुद्धि जीव, पुद्गल, धर्म अधर्म और आकाश इन पाँच अस्तिकाय द्रव्यों के संबंध में योग्य व अयोग्य का विचार करने में दक्ष है; जो मिश्र-सचित्त-अचित्त, अचित्त और सचित्त वस्तुओं के विषय में परिस्थापना -- परित्याग अथवा विचार -करते हैं; तथा जो प्राणिरक्षण में सदा तत्पर रहते हैं; ऐसे वे उत्तम पात्र पुण्यशाली जन के घर पर आया करते हैं । ठीक है – अतिशय अभीष्ट को प्रदान करनेवाली कामधेनु गायें पुण्यात्मा पुरुषों के घर में ही प्रविष्ट हुआ करती हैं ॥ ६८॥
जो मुनिसमूह नूपुरों को मनोहर अव्यक्त ध्वनि से राजहंस की आवाज को अतिशय तिरस्कृत करनेवाले और कटिभाग को विभूषित करनेवाली करधनी से सुशोभित ऐसे रमणीजन को देखकर काम के प्रबल बाणों को नष्ट करता है - उसके वशीभूत नहीं होता है- तथा मार्ग को देखकर मन्दगति से - ईर्यासमिति से - गमन करता है ऐसा वह साधुसमूह अपने पाँवोंसे चलकर भाग्यशाली पुरुष के गृह के आँगन में पहुँचता है ॥ ६९।। ____अपना पेट भरने के लिये अन्य को सदा पीडा देने में उद्युक्त हुये अनेक प्रकार के त्रस
६८) 1 मुनयः. 2 द्रव्यपदार्थादिषु . 3 कुर्बन्ति. 4 त्यागम्. 5 रक्षा. 6 पुण्यवताम्. 7 मुनयः. 8 अत्यर्थम्. ६९) । मुनिगण:. 2 नूपुरमनोज्ञम्. 3 नूपुरशब्दः. स्वनिते वस्त्रपर्णानां भूषणानां तु शिंजितम्, अभिधानम्. 4 निर्धाटितं वा जितम्. 5 यो मुनिगणः पश्यन् सन् मन्दं मन्दं गच्छति. 6 मुनिगणः ७०) 1 नानाप्रकारैः.2 त्रसस्थावररूपम्. 3 परमांसैरात्मोदरपूरकैः. 4 उद्यमपरायण वैः. 5 न मारयति. 6 प्रकृष्टः ।
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