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________________ - साधुपूजाफलम् - 243) इदं दर्शनसर्वस्वमिदं दर्शनजीवितम् । प्रधानं दर्शनस्येदं यद्वात्सल्यं सधर्मणि॥ ६१ 244) येषां तीर्थकरेषु भक्तिरतुला पापे जुगुप्सा परा दाक्षिण्यं समुदारता सममतिः सत्त्वोपकारे रतिः । ते सद्धर्ममहाभरैकधवलाः पोता भवाम्भोनिधौ। भव्यानां पततां पवित्रितधराः पात्रं परं सदृशः ॥ ६२ 245) चारित्रिणस्तृणमणीन् गणयन्ति तुल्यान् पश्यन्ति मित्रमिव शत्रुमरागरोषाः। किं भूयसा निजवपुष्यपि निर्ममत्वा ये ते परं त्रिभुवनार्चितमत्र पात्रम् ।। ६३ 246) ये नित्यं प्राणिरक्षाप्रणिहितमतयो ऽसत्यसंत्यागयुक्ता-- स्त्यक्तस्तेया मृगाक्षीमुखसुखविमुखा मुक्तमुक्तादिमूर्छाः। मूर्ता धर्मा इवैते जितमदमदना मन्दिरं मन्दरागाः पादीयैः पांशुपातै रिह यतिपतयः पुण्यभाजां पुनन्ति ॥ ६४ साधर्मिक जन के प्रति जो अनुराग प्रकट किया जाता है, इसे सम्यग्दर्शन का सर्वस्व तथा उक्त सम्यग्दर्शन का प्राण और प्रधान समझना चाहिये ॥ ६१ ।। जिन महापुरुषों के, तीर्थंकरों के विषय में अनुपम भक्ति, पापाचरण में अतिशय ग्लानि सरलता, उदारता, समबुद्धि – राग-द्वेष का अभाव - और प्राणियों के उपकार में अनुराग हुआ करता है, वे असाधारण बैल के समान समीचीन धर्म के महाभार के धारण करने में समर्थ और संसाररूप समुद्र में गिरते हुए भव्य जीवों के लिये जहाज के समान हुआ करते हैं । पृथिवी को पवित्र करनेवाले वे सम्यग्दृष्टि मनुष्य उत्कृष्ट पात्र के समान होते हैं ।।६२ ।। चारित्र के धारक जो मुनिराज तृण और रत्नों में समान बुद्धि रखते हैं, जो राग-द्वेष से रहित होते हुए शत्रु और मित्र को समान समझते हैं; और अधिक कहने से क्या, किन्तु जो अपने शरीर पर भी ममत्व नहीं रखते हैं, वे त्रैलोक्य से पूजित उत्कृष्ट पात्र हैं ऐसा समझना चाहिये ॥ ६३॥ जो सदा प्राणियों की रक्षा में सावधानतापूर्वक अपनी बुद्धि को लगाते हैं, जिन्हों ने ६१) 1 जैनमतस्य सम्यग्दर्शनस्य वत् । ६२) 1 मुनीनां श्रावकानां वा. 2 निन्दा..3 उपशमे मतिः, 4 सम्यग्दृष्टयः.। ६३) 1 मुनयः चारित्रयुक्ताः. 2 किं बहुना. 3 लोके । ६४) 1 सावधानयुक्ता मतयः 2 मुक्ताफलादि. 3 पादधूलिभिः. 4 पानं [ पवित्नं ] कुर्वन्ति ।
SR No.090136
Book TitleDharmaratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaysen, A N Upadhye
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1974
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size38 MB
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