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कारिका १०५-१०८] देवागम
- १०७ अभिप्रेत-अप्रसिद्धरूप विवादगोचर साध्यका-जो सधर्मा-दृष्टान्तके द्वारा, साध्यके साधर्म्यसे और ( विपक्षके ) अविरोधरूपसे व्यञ्जक है—गमक अथवा बोधक है-उसको नय-नयविशेषरूप हेतुकहते हैं-'नीयते गम्यते साध्योऽर्थोऽनेन इति नयः' इस निरुक्तिसे 'नय' शब्द यहाँ हेतुका वाचक है और अनेक धर्मोमेंसे एक-धर्मप्रतिपादक सामान्य नयकी दृष्टिमें भी वह स्थित है।'
द्रव्यका स्वरूप और भेदोंकी सूचना नयोपनयैकान्तानां त्रिकालानां समुच्चयः । अविभ्राड्भावसन्बन्धो द्रव्यमेकमनेकधा ॥१०७॥
"त्रिकालति नयों-उपनयोंके एकान्त-विषयोंका–पर्यायविशेषोंका-जो अपृथक्स्वभाव ( तादात्म्य ) सम्बन्धको लिये हुए समुच्चय-समूह है वह एक द्रव्य-वस्तु है और अनेक भेदरूप है।'
निरपेक्ष और सापेक्ष नयोंकी स्थिति मिथ्या-समूहो मिथ्या चेन मिथ्यैकान्ततास्ति नः । निरपेक्षा नया मिथ्या सापेक्षा वस्तु तेऽर्थकृत् ॥१०८॥
'यदि यह कहा जाय कि ( एकान्तोंको तो आप मिथ्या बतलाते हैं तब नयों और उपनयनों-रूप एकान्तोंका जो समूह द्रव्य है वह मिथ्या-समूह ठहरा ) मिथ्याओंका जो समूह वह तो मिथ्या ही होता है ( अतः द्रव्य कोई वस्तु न रहा ) तो यह कहना ठीक नहीं है; क्योंकि ( हे जिनदेव ! ) आपके मतमें और इसलिये हमारेमें ( सापेक्षनयोंका ग्रहण होनेसे ) मिथ्या एकान्तता नहीं है, जो नय (प्रतिपक्षी धर्मके सर्वथा निराकरणरूप) निरपेक्ष होते हैं वे ही मिथ्यानय ( दुर्नय ) होते हैं सापेक्षनय ( जो कि प्रतिपक्षी धर्मकी उपेक्षा अथवा उसे गौण किये होते हैं ) मिथ्या न होकर