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________________ (देव शिल्प ग्रास पट्टीग्रन्थिग्रासग्रीवा ग्रीवा पीठगूमटघटघण्टाघण्टिकाघट पल्लवचतुर्मुख चतुःशालचतुर्विंशति फ्टचतुस्कीचतुरस्रचण्ड (४६८ कीर्ति मुखों की पंक्ति, ग्रास के मुख वाला दासा गांठ जलचर प्राणी विशेष शिखर का स्कंध और आमलसार के बीच का भाग, मुख्य निर्मिति के शिखर के नीचे का भाग कलश के नीचे का गला घण्टा, मन्दिर के ऊपर की छत कलश, आमलसार कलश, आमलसार, गुमट छोटी आमलसारिका, संवरणा के कलश पल्लयांकित घट की डिजाइन चौमुख, सर्वतोभद्र, मंदिरों या मंदिर ( अथवा उसकी अनुकृति) का ऐसा प्रकार जो चारों दिशाओं में खुला होता है। घर के चारों तरफ का ओसरा (दालान) ऐसा पट्ट, जिसमें चौबीस तीर्थंकरों की मूर्तियां हों खांचा, चौकी, चार स्तंभों के मध्य का स्थान, चत्वर वर्गाकार, सम चौरस, चतुष्किका शिव का गण, जिसका स्थान शिवलिंग की जलधारी के नीचे रखा जाता है। जिससे स्नात्रजल उसके मुख से जाकर पीछे गिरता है। इससे जल उल्लंघन का दोष नहीं रहता है। खुली छत खुला भाग, जालीदार गोख (चन्द्र की किरण पड़े इस प्रकार खुला) आमलसार के नीचे औंधे कमल की आकृति वाला भाग सबसे नीचे का अर्धचन्द्राकर सोपान धनुष के आकार का मंडल जिसमें पाव पाव सोलह बार बढ़ाया जाता है, संख्या चूना देव प्रतिमा वक्र कार्निस (कपोत) से आरम्भ होने वाला एक ऐसा प्रक्षिा भाग जो तोरण के नीचे खुला होता है, चैत्य वातायन, कुडू मन्दिर, देवालय तल विभाग छदितट प्रक्षेप, छज्जा चन्द्रशालाचन्द्राबलोकनचन्द्रिकाचन्द्र शिलाचापाकारचारचूर्णचैत्यचैत्य गवाक्ष चैत्यालयछन्दसछाद्य
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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