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(देव शिल्प
(२५४० जिन मन्दिर में दोषयुक्त प्रतिमा का फल
प्रतिमा में दोष
भर
रौद्र रूप
प्रतिमा कर्ता का मरण कृश काय
द्रव्य क्षय होनाधिक अंग
स्वपर कष्टकारक हीनोगअधिक अंग -
शिल्पी का नाश दुर्बल अंग -
धनक्षय अधिक गोटी -
धन क्षय अधिक लम्बी -
घ. क्षय छोटा कद
प्रतिमा का का मरण तिरछी दृष्टि वायों या बायों ओर- मूर्ति अपूजनीय, दृष्टिधन नाश, विरोध,
भयोत्पत्ति, शिल्पकार एवं आचार्य का नाश नोची दृष्टि
पुत्र हानि, धन हानि, भय, पूजकों को हानि , विघ्नकारक नत्र रहित
दृष्टि क्षय खराब नत्र -
दृष्टि नाश आतेगाढ़ दृष्टि -
अशुभकारक जय दृष्टि
राजा, राज्य, स्त्री, पुत्र नाश स्तब्ध दृष्टि
शोक. उद्धेग, संताप,धन क्षय छोटा मुख
शोभा एवं कांति क्षय ऊर्ध्व मुख -
धन नाश अधोमुख -
चिन्ताकारक ऊंचे नीचे मुख
परदेश गमन टेढी गरदन -
स्वदेश नाश दीर्घ उदर
रोगोत्पत्ति कृश उदर
अकाल पश हृदय
उद्वेग, हृदय रोग, गहोदर नीचा कन्धा
भ्रातृ मरण लम्बी कांख -
इष्ट वियोग लम्बी नाभि
कुल क्षय