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(देव शिल्प
(२०३)
त्रिखंडा कला रेखाओं की सारणी
चारका नाम
रेखाकानाम
प्रथम खण्ड द्वितीय खण्डं तृतीय खण्ड कला की की कला की कला की कला कुल संख्या
१
समचार
८x१८
शशिनी
८
८
८
२४
सपादचार
८x१.१/४:१०
शीतला
१०
१२
३०
९
सार्धचार ८x१,१/२- १२ सौन्यास पादोनद्वयचार ८x१,३/४= १४ शान्ता द्विगुणचार ८४२ - १६ मनोरमा स्पाद द्विगुणचार ८४२,१/४= १८ शुभा सार्ध द्विगुणचार ४२,१/२= २० मनोभया पादोनत्रय चार ८४२,३/४ = २२ वोरा त्रिगुणचार ८४३ = २४ कुमुदा सपाद त्रिगुणचार ८४३, १/४= २६ पद्मशेखरा सार्ध त्रिगुण चार ८४३,१/२ = २८ लालेता पादोन चतुष्क चार ८४३,३/४ - ३० लीलावती चतुर्गुणाचार ८४४ = ३२ त्रिदशा सपाद चतुर्गुणाचार ८४४.१/४ = ३४ . पूर्णमंङला सार्ध चतुर्गुणाचार ८४४,१/२ = ३६ पूर्णभद्रा पादोन पंचकचार ८४४.३/४ = ३८ भद्रांगी
१७.२६
५१
1८८
५४
१४
८ ८
२२ २३
१६
३८ ६९
इस प्रकार चार खंडों की कला रेखाएं चार के भेदों से समझनी चाहिये। सोलह प्रकार के कलाचारों के भेद से प्रत्येक त्रिखंण्डादि में सोलह सोलह रेखाएं बनती हैं। अतः कुल रेखाएं २५६ होती हैं। शिखर की ऊंचाई में जितनी कला रेखा हो, उतनी ही स्कन्ध में भी बनाना चाहिये।