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________________ (देव शिल्प १९८) शिखर मन्दिर के ऊपरी भाग में पर्वत की चोटी के आकार की उच आकृति निर्माण की जाती है। इसे शिखर कहते हैं। दूर से दर्शनार्थी को शिखर के दर्शन होते हैं जिनसे यह आभास हो जाता है कि यहां पर देवालय है। उत्तर भारतीय शैली में शिखर सामान्यतः वक्रीय होता है। दक्षिण भारतीय शैली में शिखर -बदाकार अथवा अष्टकोण या चतुष्कोण होता है। दक्षिण भारतीय शैली के शिखरों पर अनेक कलश होते हैं। शिखर विहीन मन्दिर भी बनाये जाते थे किन्तु शिखर मन्दिर के अपरिहार्य अंग हैं सिर्फ शोभा नहीं । दक्षिण में हेमाड़ पन्थी मन्दिरों में शिखर नहीं हैं। सांची एवं मुकुन्दरा आदि स्थलों में भी शिखर विहीन मन्दिर मिले हैं। कुछ समय पूर्व एक भ्रामक विचार शैली ने जन्म लिया। इसमें शिखरयुक्त जिनालय को मन्दिर तथा शिखर विहीन जिनालय को चैत्यालय कहा जाने लगा। वास्तव में गृह चैत्यालयों में शिखर नहीं होता तथा उनका शक निर्माण रादि किया जाये तो भी गड त्यालयों में कलश नहीं रखा जाता। गृह चैत्यालयों का आकार काफी छोटा होता है तथा सामान्यतः ये काष्ठ निर्मित होते हैं। शिखर निर्माण शिखर के नीचे के दोनों कोनों के दस भाग करें। इनके छह भाग के बराबर शिखर के स्कन्ध की चौड़ाई रखें। छह भाग से न अधिक रखें ना ही कम।* प्रासाद के वर्गाकार क्षेत्र के दस भाग करें। उनमें से दो दो भाग के दो कोण बनायें। तीन भाग का भद्र तथा डेढ डेढ़ भाग के दो प्रतिकर्ण बनायें। शिखर की ऊंचाई चौड़ाई से सबा गुनी होना चाहिये। स्कन्ध छह भाग का ही रखें। अब स्कन्ध के गौ भाग करें। चार भाग के दोनों कोण तीन भाग के दोनों प्रतिकर्ण तथा दो भाग का पूरा भद्र बनायें। अब रेखाओं को बनायें! ** . शिखर की ऊंचाई का मान खर शिला से कलश के अन्त भाग तक की ऊंचाई के बीस भाग करें। उनमें आठ, साढ़े आट अथवा नौ भाग मण्डोवर (मन्दिर की दीवार) की ऊंचाई रखें । शेष ऊंचाई का शिखर बनायें। यह क्रमशः ज्येष्ठ, मध्यम, कनिष्ठ मान है। मूल रेखा के विस्तार से चार गुना सूत्र लेकर दोनों कोने के मूल बिन्दु से दो वृत्त बनाएं। जिसके दोनों वृत्तों के स्पर्श से कमल की पंखुड़ी जैसा आकार (पाकोश) बन जाता है। उसमें दोनों कोने के मध्य की चौड़ाई से सवाया शिखर की ऊंचाई रखें ! # इस प्रकार सवाया शिखर करने के बाद जो पद्मकोश की ऊंचाई शेष रहती हैं उसमें ग्रीवा, आमलसार कलश बनावें। *प्रा. मं. ४ / १२, "(ज्ञान स्नकोष), प्रा. मं. ४ / २२ अप. सू. १३.., #प्रा. मं. ४ / २३
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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