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(देव शिल्प)
(१८ गर्भगृह प्रासाद का सबसे प्रमुख भाग गर्भगृह होता है। गर्भगृह का तात्पर्य गूढ स्थल से है। जिनेन्द्र प्रभु अथवा पूज्य देव की प्रतिमा की स्थापना इसी में की जाती है। गर्भगृह का निर्माण पर्याप्त सावधानी से किया जाना आवश्यक है।
आकार की अपेक्षा गर्भगृह केभेद १.सम चौरस (वर्गाकार) २.लम्ब चौरस(आयताकार) ३. गोल (वृत्ताकार) ४. लम्बगोल (अण्डाकार)
५.अष्टकोण
प्रासाद के गर्भगृह का माप एक से पचास हाथ तक कहा गया है। कुंभक या जाड्यकुंभ का निकास इसके अतिरिक्त गर्भगृह की दीवार के बाहर होना चाहिये। विभिन्न थरों का निर्गम, पीठ एवं छल्ने का निर्गम (निकलता हुआ भाग ) भी समसूत्र के बाहर नहाना चाहिये।
गर्भगृह समरेखा में चौकोर (वर्गाकार) होना चाहिये। उसी में फालना (खांचे) देकर प्रासाद में तीन, पांच, सात या नौ भाग किये जा सकते हैं। गर्भगृह की चौड़ाई में चौथाई भाग के बराबर दोनों ओर कोण रखें तथा मध्य में आधा भाग भित्ति को खांचा देकर थोड़ा सा आगे निकाल देवें । यह तीन अंगों वाला प्रासाद कहलाता है।
इसी प्रकार दो कोण, दो खांचे, एक भित्ति रथ वाला प्रासाद पंचांग वाला प्रासाद कहा जायेगा । दो कोण, दो- दो उपरथ (कोने के बीच का तीसरा कोना) तथा एक भित्तिरथ वाला सप्तांग प्रासाद कहलाता है।
दो कोण, चार-चार उपरथ, एक रथिका युक्त प्रासाद नवांग प्रासाद कहलाता है।
ये प्रासाद त्रिरथ,पंचस्थ, समरथया नवरथ प्रासाद भी कहे जाते हैं। इन्हीं खांचों के आधार पर प्रासाद की पूरी ऊंचाई खड़ी की जाती है।
प्रा.मं.१/.. सावधानी -
प्रासाद का माप प्रासाद की दीवार के बाहर कुम्भी के कोण तक गिनना चाहिये।
गर्भगृह वर्गाकार ही बनाना चाहिये । काष्ठ मन्दिर तथा वल्लभी जाति के प्रासाद यदि लम्बाई में अधिक भी हों तो दोष नहीं लगता । गर्भगृहएक, दो या तीन अंगुल भी लम्बाई में अधिक हो तो यमचुल्ली नामक दोष लगता है। यह मन्दिर निर्माता के गृह नाश का निमित्त बनता है। अतएव गर्भगृह लम्बा न बनायें। विवेक विलास के मत से - प्रासाद के चौड़ाई के चौथे भाग से एक अंगुल कम या ज्यादा करके प्रतिमा रखना चाहिये अथवा प्रासाद की चौड़ाई की चौथाई भाग के पुनः दस भाग कर उसका एक भाग बढ़ाकर या घटाकर प्रतिमा का प्रमाण निकालें।