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(देव शिल्प
संसारणा
मंडप का आच्छादन संवरणा से किया जाता है। बाहर का कलात्मक भाग संवरणा कहलाता है। जबकि भीतरी भाग गूमट कहलाता है। संवरणा के २५ प्रकार है। संवरणा की रचना घंटी रथिका कूट और तवंग से की जाती है। प्रथम संवरणा में तल भाग ८ भाग करें तथा उसके बाद प्रत्येक में ४-४ भाग बढ़ाते जाएं। १- पुष्पिका
५घटिका तल भाग - ८ भाग २- नन्दिनी
९घटिका तल भाग - ५२ भाग दशाक्षा
१३घंटिका तल भाग - १६ भाग देवसुन्दरी
१७ घंटिका तल भाग - २० भाग कुलतिलका
२१ घंटिका तल भाग - २४ भाग रम्या
- २५घंटिका तल भाग - २८ भाग उद्भिन्ना - २९घंटिका तल भाग - ३२ भाग नारायणी
३३घोटका तल भाग - ३६ भाग ९- नलिका - ३७ घटिका तल भाग - ४० भाग
चम्पका ___- ४१घंटिका तल भाग - ४४भाग पद्मा
- ४५ घंटिका तल भाग - ४८ भाग १२- समुद्भवा
४९ घंटिका तल भाग- ५२ भाग १३- त्रिदशा
५३,टिका तल भाग- ५६ भाग १४- देवगान्धारी
५७ घंटिका तल भाग- ६०भाग १५- रत्नगर्भा
६१ घंटिका तल भाग- ६४'भाग १६- चूडामणि
६५ घंटिका तल भाग- ६८ भाग हेमकूटा
६९ घटिका तल भाग- ७२भाग १८- चित्रकूटा
७३ घंटिका तल भाग- ७६ भाग १९- हिमाख्या
७७ घंटिका तल भाग- ८० भाग २०- गन्धमादिनी
८१घंटिका तल भाग- ८४ भाग २१- मन्दस
८५घंटिका
तल भाग- ८८ भाग २२- मालिनी
८९ घंटिका तल भाग- ९२ भाग २३- कैलासा
९३ घंटिका तल भाग- ९६ भाग २४- रत्नसंभवा
९७ घटिका तल भाग- १०० भाग २५. मेरुकूटा - १०१ घटिका तल भाग- १०४भाग
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