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(देव शिल्प
खिएकी मंदिरों मे खिड़की बनाने का अपना विधान है। यदि मंदिर ऐसे देय का है जिनके लिए प्रकाश युक्त/निरंधार/प्रदक्षिणा रहित / व्यक्त प्रासाद बनाया जा सकता है तो ऐसी स्थिति में मंदिर में दरवाजों के सूत्र में तथा ऊपरी भाग में खिड़की लगा सकते हैं।
यदि ब्रह्मा, विष्णु , शिव एवं सूर्य का मंदिर बनाया जाता है तो इसमें सूर्य प्रकाश आ.|| अर्थात् भिन्न दोष युक्त होना दोषकारक नहीं है। इस मंदिरो में लम्बे दालान, जाली अथवा दरवाञ्चों रो प्रकाश आना दोष नहीं माना जाता।
जिनेन्द्र प्रभु के मंदिर, गौरी, देवी एवं मनु के उपरान्त होने वाले देशों के मंदिरों में सूर्य प्रकाश का प्रवेश अर्थात् भिन्न दोष होना दोषकारक है अतएव इनके मंदिरों में सूर्य प्रकाश का सोधा प्रवेश नहीं होना चाहिए। ऐसा राभी प्राचीन मंदिरों में सामान्यतः देखा जा सकता है।
वर्तमा। शैली के मंदिरों में पर्याप्त वायु प्रवाह एवं प्रकाश के लिए खिड़की बनाना अपरिहार्य माना जाता है। ऐसी स्थिति में जिन गंदिरों में भिन्न दोष रहित मंदिर बनाना आवश्यक हो यहाँ गर्भगृह में खिड़की न बनायें।
खिडकियां बनाने के नियम १. खिड़कियां सम संख्या २, ४, ६, ८ में बनायें। २. खिड़कियों के पल्ले भीतर खुल.) वाले हों।
खिडकियां दो पल्ले वाली हो बनायें।
खिडकियों की सजावट मुख्य द्वार के समकक्ष भव्य नहीं करके सामान्य शैली में करें । ५. यदि गन्दिर में खिडकियां बनाना अपारेहार्य हो तो इन्हें उत्तर एवं पूर्व दिशा में बनाना
चाहिये। ६. जि- मन्दिरों में सूर्य किरण प्रवेश उपयुक्त न हो उनमें खिडकी के ऊपर इस प्रकार का
छज्जा लगायें कि सीधी सूर्य किरप्ण मन्दिर में प्रवेश न करें। ७. गर्भगृह के पीछे परिक्रमा में खिड़की एवं झरोखा न बगायें ।गर्भगृह के पीछे खिड़की या
झरोखा बनाने से मंदिर में पूजा, अभिषेक शनैः-शः बन्द हो जाता है। *
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*ांचेमुख भवेन्द्रिं पृष्टे यदा करोति च। प्रसादे न भवेत् पूजा गृहे कोड- राक्षसाः ॥ शिल्पदीपक