SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (देव शिल्प (५५) सप्तशाखाद्वार रात शाखा की चौड़ाई के आठ भाग करें। मध्य में चौथी शाखा रतंभ शाखा की चौड़ाई दो भाग करें। दोनों तरफ तीन-तीन शाखा एक एक भाग को रखें। स्तम्भ में दोनों तरफ चौड़ाई में तथा निर्गग में चौथाई चौथाई भाग की कोणिका बनायें। डेढ भाग का निकलता हुआ स्तंभ श्रेष्ठ है। दुसरी एवं सातवीं शाखा का निर्गम एक एक भाग रखें। अन्य शाखाओं का निर्गम आधा आधा भाग रखना चाहिये। मध्य में स्तंभ शाखा तीसरी व पांचवी शाखा रो आगे निकलती हुई रखें। सात शाखाओं के नाम इस प्रकार हैं - प्रथम पत्र शाखा, दूरारी गन्धर्व शाखा, तीसरी रुप शाखा, चौथी स्तंभ शाखा, पांचवीं रुप शाखा, छठवीं खल्व शाखा, सातवीं सिंह शाखा है। न हस्तिनी सप्त शाखा विस्तार भाग 8 उदुम्बर । स्त्र शाखा मंदारक सिन शाखा खस्वशाखा शपशाखिका ग्रास रुपशाचिका धर्वशाच्च रुप स्तम्भ सप्तशाखा द्वार एवं उदुम्बर की रचना बवशाखा द्वार वशाखा की चौड़ाई के ग्यारह भाग करें। उरागों दोनों स्तंभ दो दो भाग रखें। उसके दोनों तरवा चौथाई चौथाई भाग की कोणिकाएं ब-गायें । रतंभ की निर्गम डेढ़ा या पौने दो गुना रखें। इन नव शाखाओं में दो स्तंभ शाखा तथा दो गन्धर्व शाखा है। दोनों स्तम्भ की चौड़ाई दो दो भाग रखें। प्रत्येक शाखा की चौड़ाई एक एक भाग रखें। नव शाखाओं का विस्तार प्रासाद के कोने तक किया जाता है। नवशाखाओं के नाम इस प्रकार हैं - प्रथा पत्र शाखा, द्वितीय गंधर्व शाखा, तृतीय स्तंभ शाखा, चतुर्थ खल्व शाखा, पंचम गंधर्व शाखा, षष्टम रुप स्तंभ, सप्तम रुप शाखा, अष्टम खल्व शाखा, नवम सिंह शाखा है।
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy